डुमरांव (बक्सर): नन्दन ग्राम में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बक्सर के बैनर तले लोगों के बीच दिव्यांग बच्चों के अधिकार एवं कार्यों के बारे विधिवत जानकारी दी गई। यह कार्यक्रम जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष आनन्द नन्दन सिंह एवं अवर न्यायाधीश सह सचिव नेहा दयाल के मार्गदर्शन में पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं पीएलवी अनिशा भारती द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुखिया रामजी सिंह यादव ने किया।
पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि दिव्यांग होना कोई अपराध नहीं है यह प्रकृति की देन है।इसके लिए उन्हें अपमानित करने या धमकी जैसे मामले में आरोपी को जेल की सजा भुगतनी पड़ सकती है।केन्द्र सरकार ने दिव्यांगों के अधिकार के तहत संवेदनशील पहल की है। इसके मुताबिक अब दिव्यांगो को अपमानित करने,धमकी देने,पिटाई करने पर 6 माह से 5 साल तक कि सजा और जुर्माना हो सकती है।राजपत्र में प्रकाशित दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 में इसे लेकर सख्त प्रावधान किए गए हैं।
राजपत्र में प्रकाशित किये गए दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 में दिव्यांगों के अधिकारों वो सार्वजनिक स्थानों पर अपमानित करने के उद्देश्य से धमकी देने को अपराध घोषित कर दिया गया है।साथ ही दिव्यांग को अपमानित करना ,जानबूझकर उसके साथ भोजन या पानी लेने से इनकार करने,दिव्यांग बच्चे व महिला के यौन शोषण, दिव्यांगों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले सहायक उपकरणों को नुकसान पहुंचाने पर सजा का प्रावधान किया गया है।इसके साथ ही दिव्यांग महिला की सहमति के बगैर गर्भपात करवाने को भी अपराध के दायरे में शामिल किया गया है।
पीएलवी अनिशा भारती ने बताया कि हमारे समुदाय में दिव्यांग लोगों के इर्दगिर्द रूढिवादिता और भेदभाव के कारण सबसे बड़ी बाधा दूसरे लोग हैं।इसलिए पूरे समाज को दिव्यांग लोगों द्वारा लाये जाने वाले महत्व को पहचानने की जरूरत है न कि केवल उन लोगों की जो इससे प्रभावित हुए हैं।
दिव्यांग बच्चे समाज से कुछ अलग-थलग हो जाते हैं लेकिन उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनायें चलायी जा रही है।इनका क्रियान्वयन इस प्रकार किया जा रहा है ताकि इन बच्चों के मन में यह भाव न आए की वे किसी प्रकार की अक्षमता से जूझ रहे हैं बल्कि वे भी सामान्य बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।इसके लिए भारत सरकार ने नी:शक्त जन अधिनियम 2016 के तहत दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा, संरक्षण, अधिकार व रोजगार की व्यवस्था की है।
भारत में लगभग4.8%आबादी दिव्यांग है।हर 10 बच्चों में से एक शारीरिक,मानसिक या संवेदी विकलांगता के साथ पैदा होता है।
दिव्यांग बच्चों में स्कूली शिक्षा में लैंगिक भेदभाव होता है।05 साल से कम उम्र के 75% और 5-19 साल के 25 % दिव्यांग बच्चे किसी भी स्कूल में नहीं जाते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 78,64,636 विकलांग बच्चे थे जो कुल आबादी का 1.7% था।दिव्यांग बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं चला रही है।
कई बार इनका परिवार उनका भरणपोषण करने में सक्षम नहीं होता और उन्हें असहाय छोड़ देता है।यह हमारा दायित्व है कि ऐसे बच्चों का अपनी क्षमता के अनुसार लालन-पालन करने में मदद करें। इस दौरान मानसिक रूप से बीमार और विकलांग लोगों एवं बच्चों के मैत्रीपूर्ण विधिक सेवाएं और उनके संरक्षण योजना 2015 की जानकारी पैनल लॉयर मनोज श्रीवास्तव द्वारा दी गई।
पैनल अधिवक्ता ने कहा कि विकलांग बच्चों को तनावों,कुंठाओं और संघर्षों का अधिक सामना करना पड़ता है जिससे उनमें व्यवहारगत विकृतियाँ विकसित होने की अधिक सम्भावना होती है।अमेरिका की डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी ने शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए हैंडीकैप की जगह 1980 में डिफरेंटली एबल्ड शब्द के इस्तेमाल पर जोर दिया गया।भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिसम्बर 2015 को मन की बात कार्यक्रम में विकलांग को दिव्यांग नाम दिया।
मनोज श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और विकलांग अधिनियम 1995 के अनुच्छेद 26 में विकलांग बच्चों को 18 वर्षों की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। RPWD अधिनियम 2016 से पहले केवल 7 प्रकार की दिव्यंगताओं को मान्यता दी गई थी।RPWD अधिनियम 2016 के तहत अब कूल 21 प्रकार की दिव्यंगताओं को मान्यता दी गई है।
विकलांग को मारने पर RPWD अधिनियम की धारा 92 में विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ अत्याचारों की सजा पर चर्चा की गई है।ऐसे अत्याचारों में कानून के तहत स्वीकृत कारावास 6 महीने है जिसे जुर्माने के साथ या उसके बिना 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है।NSO की रिपोर्ट के हवाले से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांगता सबसे ज्यादा है।