कुंवर सिंह की स्मृतियों को स्थापित करने में नीतीश की बड़ी भूमिका: नरेंद्र पाठक

देश
  • आज समाज को बदलने के लिए तलवार नहीं कलम की जरूरत है: विनीत सिंह
  • कुंवर सिंह की स्मृति को देशभर में स्थापित किया जाएगा- धीरज सिंह

आराः राष्ट्रीय कुंवर वाहिनी के तत्वावधान में वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव का अतिथियों ने संयुक्तरुप से दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया।
विजयोत्सव को सम्बोधित करते हुए विधान पार्षद विनीत सिंह ने कहा- समाज मे एकजुट होकर चलना होगा, तभी परिवर्तन आ सकेगा। मैं सरकार से आग्रह करता हूँ कि कुंवर सिंह जी 80 वर्ष की उम्र में लड़ाई लड़े थे, इसलिए 80 फूट की प्रतिमा पटना में या आरा में स्थापित होना चाहिए। अगर ऐसा नही हुआ तो जनसमर्थन से प्रतिमा को स्थापित किया जाएगा।
विधायक महेश्वर सिंह ने कहा कि समाज को एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की जरूरत है। समाज के हर युवा को पढ़ने और एकजुट होने की जरूरत है।
जगजीवन राम संसदीय एवं राजनीतिक शोध संस्थान के निदेशक डॉ. नरेंद पाठक ने अपने सम्बोधन में कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीर कुंवर सिंह जी के सम्मान में 23 अप्रैल को राजकीय समारोह के रूप में मनाए जाने की घोषणा के बाद इसे मनाया जाने लगा। पटना में हार्डिंग पार्क का नाम बदलकर शहीद वीर कुंवर सिंह आज़ाद पार्क बनाकर दर्शनीय बनाया। डुमरांव में वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज बनवाया। वहीं राज्य सरकार वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा और बिहार यूपी को जोड़ने वाले पुल का नामकरण वीर कुंवर सिंह के नाम पर किया।
कार्यक्रम में आए आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय कुंवर वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरज सिंह उर्फ लवजी ने कहा आप तमाम आगत अतिथियों का राष्ट्रीय कुंवर वाहिनी और आरा की सम्मानित जनता की तरफ से आपका स्वागत करते हैं। इस कार्यक्रम को किए जाने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य है वीर कुंवर सिंह जी की स्मृतियों को संजोना। जगदीशपुर में अवस्थित किले, संग्रहालय को संरक्षित करने तथा जगदीशपुर में तोरणद्वार बनाए जाने, आरा और बिहिया स्टेशन पर कुंवर सिंह जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाएगा।

डॉ. विकास सिंह के साथ लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव

बाबू वीर कुंवर सिंह के ऊपर लगातार काम करने वाले ‘वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ पुस्तक तथा ‘कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ नाटक लिखने वाले, राष्ट्रीय कुंवर वाहिनी की त्रैमासिक पत्रिका ‘कुंवर दर्पण’ का संपादन करने वाले लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने कुंवर सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक समरसता के पुरोद्धा थे वीर कुंवर सिंह, इन्हें समझने की जरूरत है।
‘वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ पुस्तक तथा ‘कुंवर सिंह की प्रेमकथा’ नाटक लिखने वाले श्री मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि विजयोत्सव क्यों मनाया जाता है, तो मैं आपको बता दूं कि 9 माह बाहर युद्ध लड़ने वाले बाबू साहब ने 15 युद्ध लड़े और सारे जीतते गए। वापस लौटे तो शिवपुर दियर के पास अंग्रेजों ने गोला दागा जो बाबू साहब को आकर लग गया और उनका बांया हाथ घायल हो गया। बिना देर किए हुए ही उन्होंने अपने तलवार से बांह को काटकर गंगा मईया को सुपूर्द कर दिया। उसी कटे हाथ से ही आरा और जगदीशपुर को पुनः अंग्रेजों से मुक्त कराया। इसीलिए 23 अप्रैल को विजयोत्सव के रुप में मनाया जाता है और शरीर में जहर फैलने के कारण 26 अप्रैल 1858 को बाबू साहब का निधन हो गया। रह गई तो उनकी कृतियां और उनका व्यक्तित्व।

इसके अलावे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड के विभिन्न हिस्सों से विजयोत्सव कार्यक्रम में लोगों ने हिस्सा लिया।
1857 गदर को रेखांकित कर दिया। डिहरी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ0 विजय सिंह ने कहा हमारे पूर्वज थे कुंवर सिंह जी। इस कार्यक्रम में शामिल होने को मिला प्रसन्नता हुई।

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