नीतीश कुमार ने कायस्थों को मंत्रिमंडल में स्थान न देकर की है भारी भूल

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नीतीश कुमार बात करते हैं सामाजिक समरसता की। बिना भेदभाव के सबको प्रतिनिधित्व देने की। तो बार बार वे अपने मंत्रिमंडल में भेदभाव क्यों करते हैं, यह समझ नहीं आता है। बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार को सबसे पहले कायस्थ समाज ने स्वीकार्यता दी। लेकिन नीतीश कुमार ने हर बार मंत्रिमंडल में कायस्थ समाज की उपेक्षा की है। इस बार के मंत्रिमंडल में कायस्थों को किसी दल ने मंत्री नहीं बनाया है। दूसरों से उम्मीद भी नहीं थी लेकिन नीतीश कुमार को तो कायस्थों का प्रतिनिधित्व देना चाहिए। क्योंकि उनके रचनात्मकता के सिद्धांत का वाहक कायस्थ समाज ही है।

आम जनता की बात करें या ब्यूरोक्रेट्स की, कायस्थ समाज के लोगों ने नीतीश कुमार की हर योजना, हर मुद्दे पर उनका समर्थन किया है। तो क्या इसी दिन के लिए नीतीश कुमार ने कायस्थों का समर्थन लिया है कि जब उन्हें कुछ देने की बारी आए तो भूल जाएं। राजनीतिक वोट बैंक को आधार बनाते हैं तो नीतीश कुमार को यह समझना ही होगा कि चार प्रतिशत कायस्थों की पहुंच 60 से अधिक सीटों पर है। मंत्रिमंडल में नीतीश कुमार द्वारा लगातार उपेक्षा किए जाने के बाद भी कायस्थ उनके साथ सिर्फ रचनात्मक सरकार के गठन के लिए जुड़ा हुआ है। यही उपेक्षा किसी दूसरी जाति की नीतीश कुमार करते तो पूरे बिहार में बवाल शुरू हो जाता। तमाम जाति संगठन खड़े हो जाते और नीतीश कुमार को परेशानी होती। लेकिन कायस्थ इस बार भी किसी प्रकार का विरोध नहीं कर रहे लेकिन इसे कमजोरी नहीं है।

सामान्य जाति में शामिल ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार तीनों जातियों से नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी से एक-एक मंत्री बनाया है। तो कायस्थों की उपेक्षा क्यों? पिछली सरकार में भी सिर्फ भाजपा ने एक मंत्री बनाया। उससे पहले भी नीतीश कुमार ने सिर्फ एक बार सुधा श्रीवास्तव को मंत्रिमंडल में शामिल किया था। तो आज क्या मजबूरी हो गई है कि कायस्थों की ओर नीतीश कुमार का कोई ध्यान ही नहीं है? कायस्थ समाज मंत्रिमंडल के लिए याचना नहीं कर रहा है। लेकिन उसका जो अधिकार है वो नहीं मिला तो रण ही होगा।

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