भूमि विवाद में हो रही है रिश्तों की कत्ल

आलेख

-मनोज कुमार श्रीवास्तव

मामूली भूमि विवाद को लेकर खून के रिश्ते तार-  तार होते जा रहे हैं।इतना हीं नहीं भूमि विवाद के अलावे मूँछ की लड़ाई में कोख का रिश्ता भी कलंकित होते जा रहा है।सगे भाइयों, भाई-भतीजों के बीच खूनी संघर्ष जारी है।रिश्तों की कड़वाहट और स्वार्थ की बौखलाहट बखूबी जमीनी विवाद को लेकर देखा जा रहा है।भाई-भाई आमने -सामने हुए तो कहीं चाचा-भतीजे ने एक दूसरे को निशाना बनाया।जमीनी विवाद में रिश्तों की हत्या हो रही है।

    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो(NCRB)रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सबसे ज्यादा हत्याएं जमीन और सम्पति विवाद के चलते हो रही है।NCRB द्वारा जारी 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में विभिन्न विवादों के कारण हुई1,081हत्याओं में से 59%हत्यायें सम्पत्ति या जमीनी विवाद से सम्बंधित है।जमीनी विवाद में हत्या के मामले में बिहार की लगभग दुगुनी आबादी वाला राज्य उत्तरप्रदेश में 227,महाराष्ट्र में 172 हुई।

      बिहार सरकार की ओर से जमीन विवाद सुलझाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।NCRB के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि वे सब नाकाम साबित हो रहे हैं।पिछले साल देश में हत्या के के कुल मामले 2,488 सम्पत्ति या भूमि से प्रेरित थे।बिहार में जमीन या सम्पत्ति के विवाद में हत्याओं के एक समान चलन है।वर्ष 2020,2019,2018 और 2017 में सम्पत्ति या जमीन सम्बन्धी विवादों के परिणाम स्वरूप क्रमशः 815,782,1016 औऱ 939 हत्यायें हुई।

       ए.एन.सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज पटना के सहायक प्रोफेसर डॉ0 अविरल पांडे का कहना है कि, वर्तमान समाज में राज्य में संयुक्त परिवार व्यवस्था के तहत काम नहीं कर रहा है।इसका अंतिम परिणाम सम्पत्ति का विभाजन है।बिहारी समाज के लिए जमीन अमूल्य सम्पत्ति है।यह उनकी सामाजिक पहचान की भावना से भी सम्बंधित है।इसलिए परिवार के सदस्य, पड़ोसी जमीन को लेकर लड़ते हैं।

     परिवार के सदस्य जो आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं वे पारिवारिक जमीन का अधिक हिस्सा चाहते हैं।यह सब परिवारों और समाज में संघर्ष की ओर ले जाता है।वास्तविकता यह है कि हर कोई शहरों या कस्बों में ज़मीन या अपार्टमेंट का एक भूखण्ड खरीदना चाहता है।जमीन की कीमत दिन प्रतिदिन बढ़ रही है जिसके कारण शहरी क्षेत्रों में भूमि से जुड़े विवाद और मुद्दे हैं।

         रिसर्च थिंक टैंक दक्ष द्वारा किए गए एक्सेस टू जस्टिस सर्वे 2016 के अनुसार भारत में सभी दीवानी मामलों से 66.2 % भूमि या सम्पत्ति विवादों से सम्बंधित हैं।इसके अलावे सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये गए सभी मामलों में से 25% भूमि विवाद से जुड़ी है।इस साल मई में बिहार के आरा में एक जिला अदालत में 1914 में शुरू हुए एक भूमि विवाद मामले में अपना फैसला सुनाया यानी मामले को तय करने में 108 साल लग गए।

        भूमि के स्वामित्व पर परस्पर विरोधी दावे कभी-कभी खूनी हो जाता है।ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार मौजूदा स्थिति से अनभिज्ञ है। हर साल गंगा, कोसी,कमला और गंडक नदियां भी अपना रास्ता बदलती है।भूमि को जलमग्न कर फिर वापस कर देती है जिसके कारण भी विवाद पैदा होती है।बिहार में होनेवाली हत्या की अधिकांश हत्यायें जमीनी विवाद की वजह से होती है। राज्य में होनेवाली कुल हत्याओं का 60%तो जमीनी विवाद से जुड़ा होता है।

       मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाओं पर विधि व्यवस्था की उच्चस्तरीय समीक्षा की और कहा है कि विधि व्यवस्था सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।उन्होंने ADG को निर्देश दिया है कि गम्भीर आपराधिक घटनाओं पर कड़ी कार्रवाई की जाए।सोशल मीडिया पर भी दिया जाये।साथ हीं लैंड सर्वे एंड सेटलमेंट के काम को तेजी से निपटाने के निर्देश दिया है।

       NCRB के अनुसार साल 2021 में बिहार में 3,336 कांड के पीछे केवल जमीन का विवाद है।यही वजह है कि राज्य सरकार ने जमीनी विवाद को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर कार्ययोजना तैयार की है।कानून तो बनते हैं लेकिन धरातल पर कितना खरा उतरता है यह तो सबको दिखता है। यदि सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी ईमानदारी पूर्वक चाहे तो जमीन का विवाद काफी हद तक कम होगा।

        लेकिन वे अधिकारी एवं कर्मचारी अपनी जेब भरने के कारण सही रास्ता नहीं निकाल कर उलझाए रहते हैं।दाखिल-खरिज में तो अंचल कार्यालयों में बगैर नाजायज लोगों के एक कदम आगे नहीं बढ़ते हैं।हल्का कर्मचारियों की मनमानी चरम पर है।तभी तो आये दिन अधिकारी, कर्मचारी रिश्वत लेते हुए पकड़े जाते हैं और जेल के अंदर नजर आते हैं।यदि सही ढंग से जांच पड़ताल हो तो पता नहीं कितने पकड़े जा सकते हैं।

      सरकार  चाहे लाख शिकंजे कसे वो सिर्फ दिखावा है जनता भली भांति समझ रही है क्योंकि बगैर चढ़ावा के कोई काम नहीं हो रहा है।जनता किसी तरह गीड़गिड़ाकर अपना काम करवाना चाहती है पचड़े में फंसना नहीं चाहती है।आखिर क्या कारण है कि लोग काम कराने के लिए अपनी जान तक गवां रहे हैं और अधिकारी,कर्मचारी मौन साध लेते हैं। जनता सरकार की सभी चालों को भली-भांति समझ रही है।आम जनता को यह विश्वास हो गया है कि सरकार की पकड़ अब अपने अधिकारियों, कर्मचारियों पर कम होते जा रही है या सरकार उन्हें छुपे रुस्तम भ्रष्टाचार की खुली छूट दे रखी है।

      (लेखक राजनीतिक संपादक हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *