- समता कुमार (सुनील)
धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आजादी के झंडाबरदार ‘द केरल स्टोरी’ पर चुप क्यों हैं ? फिल्म में जिन लड़कियों की दर्दनाक कहानी बताई है उनके परिजनों से एबीपी न्यूज ने संवाद भी किया है।
अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा बताने वाले एक पत्रकार ने ही केरल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने रोक लगाने से इंकार कर दिया। इसलिए यह फिल्म 5 मई को देशभर में रिलीज हो गई।
सुदीप्तो सेन के निर्देशन और अदा शर्मा की पहल पर बनी ‘द केरल स्टोरी’ में केरल की उन लड़कियों की कहानी बताई गई है, जिन्हें पहले प्रेम जाल में फंसाया गया और फिर आतंकी संगठन आईएसआईएस के युवकों के हवाले कर दिया। अब ऐसी लड़कियाँ सीरिया, अफगानिस्तान आदि में यातनाएं भोग रही हैं। इनमें हिन्दू लड़कियाँ ही नहीं, बल्कि ईसाई लड़कियाँ भी हैं। यह फिल्म सुनी बातों पर आधारित नहीं है, बल्कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है।
फिल्म में दिखाए दृश्यों पर एबीपी न्यूज चैनल ने पीड़ित लड़कियों के परिजनों से भी बात की और फिल्म की कहानी को एक दम सही बताया। अभिभावकों को इस बात की पीड़ा रही है कि युवकों ने पहले तो बेटियों को अपने प्रेम जाल में फँसाया और आतंकवादियों के हवाले कर दिया। जो लड़कियाँ बच कर आ गई, उनकी कहानी तो रोंगटे खड़े कर देने वाली है। सवाल उठता है कि ऐसे कौन से लोग हैं, जो केरल की सच्ची घटनाओं को भी सामने नहीं आने देना चाहते ? जो लोग देश में अभिव्यक्ति की आजादी को खतरे में बताते हैं, वहीं फिल्म पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं।
केरल देश में सबसे ज्यादा शिक्षित प्रदेश है। यदि इस प्रदेश में पढ़ी लिखी लड़कियों को भी फंसाया जा रहा है तो पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। ‘द केरल स्टोरी’ से उन लड़कियों को भी सबक लेना चाहिए जो प्रेम जाल में फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर रही है। ऐसे युवाओं की मानसिकता को इस फिल्म से समझा जा सकता है।
केरल की मासूम लड़कियों को जिस तरह नरक में धकेला गया है, वह बेहद शर्मनाक और दर्दनाक है। यह फिल्म लव जिहाद की बात पर मुहर लगाती है। लड़कियों को पहले प्रेम जाल में फंसाया जाता है और फिर जेहादी मानसिकता के तहत आतंकी संगठनों को सौंप दिया जाता है। ऐसी लड़कियों का उपयोग मानव बम के रूप में भी किया जाता है। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले भी आज ‘द केरल स्टोरी’ पर चुप है। यहाँ तक की ऐसी घटनाओं की आलोचना तक नहीं की जा रही है। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, नितीश कुमार, तेजस्वी यादव, अशोक गहलोत जैसे तुष्टिकरण की दूषित राजनीति करनेवाले राजनेता भी चुप हैं।
केरल में वामपंथियों की सरकार है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी प्रदेश की लड़कियों के आतंकी संगठनों के जाल में फंसने पर चिंता प्रकट की है।

लेखकः समता कुमार (सुनील)