ज्ञान की धरती बिहार ,आज भी गरीब है क्यों ?

आलेख

मनोज कुमार श्रीवास्तव

जातिवादी जंजाल,कृषि क्षेत्र और शिक्षा नीति की विषमता, उद्योगों ,कलकारखानों का अभाव, बढ़ती जनसंख्या, भ्रष्टाचार का भस्मासुर, सरकारी दोषपूर्ण नीतियों और कार्यपालिका की अकर्मण्यता ने बिहार को गरीब और बीमारू राज्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।बिहार की जो दुर्दशा हुई है उसके जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि स्वयं बिहारी हैं जो अपने को बिहार का जिम्मेदार नागरिक हैं।भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अशिक्षा इसके सबसे अच्छे उदाहरण है।जहां देश से बढ़कर जाति हो जाती है वहां ऐसा हाल हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।बिहार की जनता आज तक सिर्फ जातिवादी राजनीति की है, अपनी जाति का विधायक, मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और प्रधानमंत्री होना चाहिए।

       बिहार में गरीबी का मुख्य कारण उद्दोगों की कमी,शिक्षा की कमी के कारण लोगों में रोजगार न मिलने के कारण बिहार में अधिक गरीबी है।रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 51.91 %जनसंख्या गरीब है।केरल देश का न्यूनतम गरीब राज्य है यहां 0.71%, जनसंख्या गरीब है बिहार की 51.88%जनसंख्या(देश में सर्वाधिक)कुपोषण की शिकार है।वहीं सिक्किम देश का सबसे कम कुपोषित राज्य है।यदि बिहार की सबसे गरीब जिले की बात करें तो शिवहर  है।जिसका घरेलू उत्पाद 0.19%है बिहार के अमीर जिलों की सूची में पहले स्थान पर राजधानी पटना है।स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के 38 जिले में से 11 जिले में हर 10 में से 6 व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करता है ।अररिया और मधेपुरा में यह आंकड़ा 7 तक पहुंच गया है।

      बिहार में गरीबी के मुख्य कारण यहां की राजनीति, एक साथ एक्सपर्ट एवं भारत की गुलामी के समय का इतिहास।बिहार में सबकी निगाह सम्पति बनाने की कला सीखने,सिखाने पर नहीं बल्कि सम्पति के बंटवारे पर ही है।बिहार का क्षेत्रफल सीमित है।बिहार के एक हिस्से में बाढ़ तो दूसरे हिस्से में सुखाड़ हर साल आता है।बिहार में क्षेत्रफल के मुकाबले अत्यंत घनी जनसंख्या है जो शायद विश्व में प्रतिवर्ग किलोमीटर के हिसाब से सर्वाधिक है।बिहार में कृषि आधारित उद्योग ना के बराबर है जो पहले थे वह कुशासन और कुव्यवस्था के कारण बन्द हो गये।

     बिहार में जातपात की राजनीति बहुत होती है।छोटे-छोटे बच्चे भी हर बात में राजनीति की बात करते हैं सबको अपनी जाति के गुंडे,मवाली और गुंडे राजनीतिज्ञ पर गर्व होता है।भ्रष्ट और गुंडा राजनीतिज्ञ अगर सो जाते हैं और अपनी जाति के लिए कुछ करे या ना करे तो यहां के अधिकांश लोग अपनी जाति के भ्रष्ट राजनेता को यह कहकर बचाव करते हैं कि क्या दूसरी जाति के राजनेता चोरी नहीं करते।यहां के लोग अक्सर राष्ट्र की धारा से विपरीत होकर चलते हैं और उस पर गर्व करते हैं।

        बिहार के लोग मजबूरी में ही स्वरोजगार अथवा व्यवसाय को अपनाते हैं।यहाँ के लोग परिश्रम तो करते हैं लेकिन अपने राज्य में नहीं बल्कि दूसरे के यहाँ जाकर।यहां के अधिकांश लोगों को सरकारी नौकरी चाहिए उसमें भी वह नौकरी जिसमें पैसे बनाने की पूरी सम्भावना हो।यदि बिहार में एक समूह के 10 युवाओं को यूनिवर्सिटी प्रोफेसर की नौकरी मिल जाये और 5 साल बाद वह दारोगा, बीडीओ,सीओ की नौकरी निकाल ले तो प्रोफेसर जैसा उच्च वेतनमान वाला और प्रतिष्ठित पड़ एक झटके में लोग देंगें क्योंकि दूसरे पदों पर बेईमानी से लाखों करोड़ों कमाने की गुंजाइश होती है।

       कम पढ़े-लिखे की तो बात ही छोड़ दीजिए, ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे ही करमांजली से अपने जीवन की रस बहता हुआ देखते हैं।भ्रष्टाचारी नेताओं के बहकावे में आकर बिहार की जनता ने अपनों को कई साल पीछे खींच है।विश्व के सबसे महान और प्राचीनतम शिक्षक का केंद्र रहे बिहार की ऐसी दुर्दशा पर निश्चित ही दुख होता है। किसी का ध्यान सम्पति  बनाने की कला सीखने,सीखने पर नहीं है बल्कि सबकी निगाहें सम्पति के बंटवारे पर ही है।गरीब तो हैं पर गरीबी से बाहर निकलने की छटपटाहट नहीं है।जो जहाँ जिस स्थिति में हैं या तो सन्तुष्ट हैं या अहंकार में हैं।

        शिक्षा की कमी ,जिसके कारण बिहार निम्न श्रेणी के काम करने को विवश होते हैं। दूसरा विस्थापन,अधिकतर लोग बिहार में काम न मिलने के कारण दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हो जाते हैं और बिहार में विकास कम हो जाता है। तीसरा, बिहार की गंदी राजनीति जो राज्य में विकास होने ही नहीं दे रही है फलस्वरूप बिहार में गरीबी बरकरार है।

    बिहार की गरीबी दूर होने की कोई सम्भावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।गरीबी का मुख्य कारण राजनैतिक स्तर पर लूट है।किसी भी स्तर का राजनैतिक नेता बनने का उद्देश्य न तो राज्य सेवा है और न ही समाज सेवा केवल अपना आर्थिक विकास ही इन नेताओं का उद्देश्य है।और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये नेता किसी भी हद तक लूट मचाते हैं और लूट करने करने वालों का हर स्तर पर संरक्षण भी करते हैं।इसमें राजनैतिक स्तर पर राजनैतिक दलों के बीच कोई भेदभाव नहीं है बल्कि आपसी सहयोग है।

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