भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और प्रेम को दर्शाने वाला पर्व है रक्षाबंधन

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• इस दिन बहनें अपने भाई के सफल भविष्य की कामना के साथ उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं
• देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर मनाया था रक्षाबंधन


राजा की यह दानवीरता देख भगवान प्रसन्न हुए और राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। तब राजा बलि ने यह वरदान मांगा कि आप मेरे साथ पाताल लोक में रहें। लेकिन इस वचन के कारण माता लक्ष्मी परेशान हो उठीं। तब माता लक्ष्मी ने एक गरीब महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांधी। उसी समय से इस परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।

मान्यताओं के अनुसार एकबार भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा बांधा था, जिससे खून बहना बंद हो गया था। इस घटना के बाद, कपड़े का टुकड़ा एक पवित्र धागा बन जाता है और रक्षा बंधन के वास्तविक महत्व का प्रतीक है।

राजा बलि ने जब माता लक्ष्मी से रोने का कारण पूछा तो मां ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वो रो रही हैं। राजा ने मां की बात सुनकर कहा कि आज से मैं आपका भाई हूं। माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को राखी बांधी और उनके भगवान विष्णु को मांग लिया है। ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई- बहन का यह पावन पर्व मनाया जाता है।

जैन समुदाय की मान्यताओं में रक्षा बंधन की कथा कुछ अलग है। यह कथा एक मुनि द्वारा 700 मुनियों की रक्षा करने पर आधारित है। अत: इस दिन को याद रखने के लिए रक्षा का संकल्प लेकर लोगों ने हाथ में रक्षा सूत्र यानि सूत के डोरे बांधें थे। तभी से जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा यह दिन रक्षा बंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
रक्षाबंधन का संबंध कृष्णं द्रौपदी से युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। वहीं अभिमन्युर युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था।

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