• भगवान शिव ने रावण से कहा- जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा
• बैजनाथ धाम में स्था पित में शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं
• प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की
• बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है
सावन माह का आखिरी सोमवारी को भक्तों का बाबा बैद्यनाथ धाम में भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है। यहां आने वाले भक्तों की आस्था देखते बनती है। इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं समाज में प्रासंगिक हैं।
वीओः1 झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथधाम में स्थांपित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। यह देश का पहला ऐसा स्थारन है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है। लेकिन शिवपुराण में इसकी विस्ता रपूर्वक जानकारी मिलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। शिवजी ने कहा कि बिना निमंत्रण कहीं भी जाना उचित नहीं। लेकिन सतीजी ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए किसी भी निमंत्रण की आवश्यशकता नहीं। शिवजी ने उन्हें कई बार समझाया लेकिन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। जब वहां उन्हों ने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत्यंात क्रोधित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहरि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स्था न पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यिता है इस स्थाजन पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है कि इस स्थानन को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्थाहन है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स्थाान की महिमा और भी बढ़ जाती है।
बैजनाथ धाम में स्थाबपित में शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है। यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा।
ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगा।