
बिहार की छात्र राजनीति का बड़ा नाम है सुरेन्द्र सागर
बिना आधारभुत संरचना के कालेजों में लागू-
व्यावसायिक शिक्षा की अनिवार्यता और आरा सासाराम बड़ी रेल लाइन निर्माण सहित कई सवालों पर लड़ी है निर्णायक लड़ाईयां-
आनंद मोहन की साजिशपूर्ण सजा के खिलाफ शाहाबाद की धरती पर तीन तीन बार मुख्यमंत्री को दिखाए हैं काले झंडे –
राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा की वजह से भाजपा में हुए थे शामिल, आरके सिन्हा को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उचित सम्मान नहीं देने के बाद भाजपा से बढ़ाई दूरी-

पटना कार्यालय
बिहार पीपुल्स पार्टी के पूर्व संस्थापक अध्यक्ष और पूर्व सांसद आनंद मोहन के सोलह सालों बाद जेल से रिहाई के बाद से ही उनके समर्थक देश और प्रदेश की राजनीति में उनकी नई भूमिका में आने का इंतजार कर रहे हैं. समर्थकों को आनंद मोहन के बड़ी भूमिका में आने का इंतजार है. फिलहाल उनकी पत्नी जेडीयू में हैं और शिवहर से जीतकर संसद पहुँच गई है. बतौर सांसद उन्होंने शिवहर के विकास के लिए कई बड़ी बड़ी योजनाओं को केंद्र और राज्य सरकार से स्वीकृति दिलवाकर क्षेत्र के विकास की नई लकीर खिंच दी है. उनके पुत्र और शिवहर के विधायक चेतन आनंद ने भी पिछले दिनों सत्ता पलट के बाद नीतीश कुमार और एनडीए की सरकार को बचाया और क्रॉस वोटिंग करके सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार को बैठाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पूर्व सांसद आनंद मोहन देश और प्रदेश की राजनीति में लगातार सक्रिय हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन में मजबूती से खड़े हैं. जदयू में हैं या नहीं, इसका पता फिलहाल उन्होने खोला नहीं है. और उनके समर्थकों को उनके इसी पते के खुलने का इंतजार है. पिछले एक डेढ़ दशकों में अलग अलग दलों में गए समर्थकों ने भी वहां अपनी सक्रियता घटा दी है और अब अपने नेता के आने वाले दिनों में लिए जाने वाले निर्णय का उन्हें इंतजार है.
ऐसे ही निर्णयों का इंतजार कर रहे लोगों में उनके अत्यंत करीबी माने जाने वाले पूर्व छात्र नेता सुरेन्द्र सागर भी शामिल हैं. नब्बे के दशक में बिहार की राजनीति के योद्धा माने जाने वाले बाहुबली नेता आनंद मोहन के अत्यंत करीबी रहे तत्कालीन छात्र नेता सुरेन्द्र सागर ने बिहार की छात्र राजनीति को नई दिशा देकर अन्य छात्र संगठनों के लिए भी आतंक, अन्याय और जुल्म के खिलाफ निर्भीक होकर संघर्ष करने की राह दिखाई थी. उन्होंने विश्वविद्यालयों में व्याप्त शैक्षणिक अराजकता, भ्रष्टाचार और छात्रों की समस्याओं के खिलाफ सबसे पहले आगे आकर राज्यव्यापी आंदोलनों की शुरुआत की और छात्र राजनीति को नई धार भी दिया. बिहार की लालू प्रसाद की सरकार में बिना संसाधनों और आधारभुत संरचना के अनिवार्य विषय के रूप में इंटरमीडियट में लागू की गई व्यावसायिक शिक्षा के खिलाफ साल 1994 में पूरे राज्य में आंदोलन छेड़ दिया जिसका नतीजा हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद इस मुद्दे पर राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुँच गए और जब वे राजभवन से निकले तो तुरंत व्यावसायिक शिक्षा की अनिवार्यता को खत्म करने का एलान कर दिया. यही नहीं साल 1997 में जब रेल बजट आने वाला था और जब साफ हो गया की इस बजट में भी आरा सासाराम बड़ी रेल लाइन के निर्माण को लेकर घोषणा नहीं होगी तो 20 फरवरी 1997 को अपने सात साथियों के साथ आरा स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या -एक पर वे आमरण अनशन पर बैठ गए. उन्होंने प्रेस और मिडिया के समक्ष ऐलान कर दिया कि जब तक आरा सासाराम रेल लाइन को वित्तीय बजट 1997-98 में शामिल नहीं कर लिया जायेगा तब तक उनका आमरण अनशन खत्म नहीं होगा चाहे जान ही क्यों न चली जाय. करो या मरो का उनका आंदोलन जब शुरू हो गया तो उनके समर्थकों ने जिले में आमरण अनशन के समर्थन में व्यापक आंदोलन छेड़ दिया. वे अनशन पर बैठे थे तो उनके समर्थक सैकड़ो छात्र नेताओं ने जगह जगह ट्रेंनें रोक दी. सड़क जाम कर दिया. प्रदर्शन शुरू कर दिए. नतीजा हुआ कि इस मुहीम से जिले का आम से खास तक जुड़ गया और जिलेवासियों की भारी भागीदारी आमरण अनशन के समर्थन में शामिल हो गई. सामाजिक, राजनैतिक और स्वयंसेवी सांगठनो के लोग, छात्र एवं युवा संगठनों के नेता और विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग सड़क पर उतर गए. आरा बंद, जगह जगह ट्रेन रोको, स्कूल कॉलेज बंद, बार एशोसीएशन का कोर्ट के कार्यों का बहिष्कार जैसे आंदोलन ने काफी जोर पकड़ लिया. रेल प्रशासन के साथ साथ जिला प्रशासन की भी नींद उड़ गई. आमरण अनशन के पांचवे दिन सुरेन्द्र सागर और उनके दो अन्य साथियों की तबियत बिगड़ने लगी. चिकित्सकों की जांच के बाद जैसे ही यह खबर अखबारों में छपी तो लोग और उग्र हो उठे. भाजपा के तत्कालीन राज्यसभा सांसद और सीने स्टार शत्रुघ्न सिन्हा ने आरा स्टेशन पहुंचकर आमरण अनशनकारियों से अनशन खत्म करने का आग्रह किया लेकिन सुरेन्द्र सागर ने ससम्मान उनके सामने प्रस्ताव रखा कि आरा सासाराम रेल लाइन के निर्माण को इसी वित्तीय बजट में शामिल कराने के लिए केंद्रीय रेल मंत्री से बातचीत करें. शत्रुघ्न सिन्हा ने आश्वासन दिया कि दिल्ली जा रहा हूं और सबसे पहले रेल मन्त्री से मिलकर आपकी मांगों को उनके समक्ष रखूँगा. उनके आमरणस्थल से जाने के बाद उसी रात सदर एसडीओ ने आमरण स्थल पर पहुँच सुरेन्द्र सागर समेत तीन छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर आमरण अनशन तोड़वाने का प्रयास किया लेकिन इस दौरान वहां मौजूद भाजपा नेत्री और आरा की पूर्व भाजपा प्रत्याशी जया जैन सामने आ खड़ी हुई और एसडीओ समेत सैकड़ो पुलिस बल के जवानो को बैरंग वापस लौटना पड़ा. लेकिन तीन छात्र नेताओं की चिंताजनक हो रही स्थिति को ले अहले सुबह एसडीओ अविनाश कुमार पुनः स्टेशन पहुंचे और सुरेन्द्र सागर समेत अन्य आमरण अनशनकारीयों को गिरफ्तार कर आरा सदर अस्पताल ले गए जहां जूस पिलाकर अनशन तोड़वाने के प्रयास किये गए. अनशनकारी अनशन पर डटे रहे और एसडीओ अनशन नहीं तोड़वा सके. इस बीच सभी को स्लाइन चढ़ाया जाने लगा. उधर बिहार पीपुल्स पार्टी का समता पार्टी में विलय हो जाने के बाद युवा समता के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आनंद मोहन ने भी दिल्ली में रेल मंत्री पर लगातार दबाव बनाये रखा. उनके साथ बिहार के कुछ और सांसदों और बड़े नेताओं का दबाव भी रेल मन्त्री पर बढ़ा. अंततः जब बजट आने के तीन दिन शेष बच गए तो रेल मंत्री ने उनके पास मांग रखने वाले बड़े नेताओं को आश्वासन दिया कि इस वित्तीय बजट में आरा सासाराम बड़ी रेल लाइन को शामिल कर लिया जायेगा. भारी दबाव और आरा में चल रहे जनआंदोलन को देखते हुए आनन फानन में यह योजना भारत सरकार के योजना आयोग के पास भेजी गई. वहां से फिर इस योजना को स्वीकृत कर वित्त विभाग में भेजा गया और राशि स्वीकृत की गई. दोनों जगह से हरी झंडी मिलने के बाद अंततः 27 फरवरी 1997 को अपराह्न तीन बजे संसद से रेल मंत्री ने ऐलान कर दिया कि आरा सासाराम रेल लाइन को भी इसी वित्तीय बजट में शामिल कर लिया गया है. राशि की स्वीकृति दे दी गई है. पांच साल में आरा सासाराम बड़ी रेलवे लाइन बनकर तैयार हो जाएगी. रेडियो से प्रसारित इस खबर के बाद स्लाइन चढ़वा रहे अनशनकारियों में खुशी की लहर दौड़ गई और उधर जिला प्रशासन ने सूचना भिजवाई कि शाम सात बजे आरा स्टेशन पर सभी अनशनकारीयों को ले जाया जायेगा जहां एसडीओ जूस पिलाकर सभी का अनशन खत्म कराएँगे. ऐसा ही हुआ और अनशन खत्म होते ही करीब दस हजार लोगों की भीड़ आरा स्टेशन पर उमड़ पड़ी. स्टेशन से रंग अबीर के साथ पूरे शहर में विजय जुलूस निकला और देर रात तक शहर में पटाखे फुटते रहे. आज आरा सासाराम बड़ी रेल लाइन पर ट्रेंनें पूरी रफ्तार के साथ दौड़ लगा रही है और हजारों लाखों यात्रीयों को इसका सीधा लाभ मिला है.

(पूर्व सांसद आनंद मोहन और बिहार सरकार के मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू के साथ पूर्व छात्र नेता सुरेन्द्र सागर)
ऐसे कई बड़े बड़े आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले पूर्व छात्र नेता सुरेन्द्र सागर ने बिहार पीपुल्स पार्टी की छात्र इकाई स्टूडेंट पीपुल्स के भोजपुर जिले का जिलाध्यक्ष पद पर रहते छात्र युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता बटोरी. उनके समर्थकों की संख्या आज हजारों में है जो उनके एक आह्वान पर एक मंच पर जुट जाते हैं. आनंद मोहन की साजिशपूर्ण सजा के खिलाफ उन्होने अपने समर्थकों के साथ आरा, बिक्रमगंज और जगदीशपुर में आयोजित कार्यक्रमों में पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तीन तीन बार काले झंडे दिखाए. लालू राबड़ी के आतंक राज के खिलाफ भी लगातार लड़ाईयाँ लड़ी और उनके नेता आनंद मोहन की ताकत के सहारे साल 2005 में लालू राबड़ी के शासन का अंत हुआ. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के साथ बिहार के नव निर्माण का नया सबेरा हुआ. वे बिहार पीपुल्स पार्टी की युवा इकाई बिहार यूथ पीपुल्स के भी प्रदेश महासचिव पद पर रहकर युवाओं के आंदोलन को आगे बढ़ाया. जब बिहार पीपुल्स पार्टी का समता पार्टी में विलय हुआ तो उन्हें छात्र समता का प्रदेश महासचिव बनाया गया था. आनंद मोहन के नेतृत्व में समता पार्टी के छात्र युवा संगठनों में रहकर राजनीति सिखने वाले लोगों में सुरेन्द्र सागर के साथ नीरज कुमार सिंह बबलू, सम्राट चौधरी जैसे छात्र युवा नेता भी थे जो आज बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री और पीएचईडी जैसे विभागों के कैबिनेट मंत्री के रूप में सांवैधानिक पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं और बिहार के नव निर्माण का सपना साकार करने में जुटे हुए हैं.

( बिहार पीपुल्स पार्टी और समता पार्टी के एक ही राजनैतिक स्कूल से संघर्ष की शुरुआत करने वाले बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, सुरेन्द्र सागर और बिहार सरकार के पीएचईडी विभाग के मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू)
सुरेन्द्र सागर बताते हैं कि आनंद मोहन के जेल चले जाने के बाद भाजपा के संस्थापक सदस्य और तत्कालीन राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा ने उन्हें भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव दिया और बातचीत कर उन्हें भाजपा में शामिल कराया. वे इसके लिए हेलीकॉप्टर लेकर आरा भी आए. वे बताते हैं कि आरके सिन्हा ने उन्हें काफी सम्मान भी दिया. अपना सांसद प्रतिनिधि भी बनाया. अपने कोटे से रेलवे का सदस्य भी बनवाया. भाजयुमो का दो दो बार प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य भी बनवाया. वे बताते हैं कि उन्हें भोजपुर जिला में भाजपा का जिला प्रवक्ता भी बनाया गया. लेकिन आने वाले दिनों में आरके सिन्हा को पटना साहिब से लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया. राज्यसभा भी नहीं भेजा गया. चर्चा थी कि उन्हें भाजपा राज्यपाल बनाकर सम्मान देगी लेकिन पार्टी ने वह भी नहीं किया. इससे भाजपा के प्रति सुरेन्द्र सागर की नाराजगी बढ़ती गई और वे और उनके समर्थकों ने भी भाजपा से दूरी बनानी शुरू कर दी.

(सुरेन्द्र सागर को भाजपा में शामिल कराने हेलीकॉप्टर से आरा पहुंचे भाजपा के संस्थापक सदस्य और तत्कालीन राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा)-
पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने भाजपा में कोई जिम्मेदारी और दायित्व नहीं लिया और अब वे आनंद मोहन के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं. वे बताते हैं कि जल्द ही आनंद मोहन अपनी राजनैतिक पारी को बड़ी भूमिका के साथ आगे बढ़ाएंगे. उनका साफ कहना है कि वे पूर्व सांसद आनंद मोहन के नेतृत्व में एक बार फिर सघन सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका निभाएंगे और बिहार की छात्र युवा राजनीति का नेतृत्व करेंगे. उन्हें इस बात का काफी दुःख है कि आरके सिन्हा जैसे भाजपा के बड़े नेता को पार्टी ने वो सम्मान नहीं दिया जो उन्हें मिलना चाहिए था. ऐसी पार्टी में रहना उनके लिए सम्भव नहीं है जिस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पार्टी के संस्थापक सदस्यों को सम्मान नहीं दे और उनकी उपेक्षा करे. उन्होंने कहा कि आरके सिन्हा ने खून पसीना बहाकर भाजपा को बुलंदियों पर पहुँचाया है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी और आरके सिन्हा जैसे भाजपा के बड़े नेताओं ने जिस पार्टी की नींव रखी वह आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई लेकिन आज के शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी की नींव रखने वाले कर्णधारों को भुला दिया है.

(अपने आरएसएस के संघर्ष के दिनों के साथी और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करते आरके सिन्हा)-
आज देश भर में. लाखों लोग आरके सिन्हा की वजह से भाजपा को वोट देते हैं और ऐसे लोग अपने नेता की उपेक्षा से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और नए राजनैतिक रास्तों की तलाश में हैं.