– सुमन चतुर्वेदी
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।।
मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अपने वनवास के दौरान मकर संक्रांति मनाई थी। मकर संक्रांति पर, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोग देवी संक्रांति की पूजा करते हैं, जिन्होंने राक्षस शंकरासुर का वध किया था। अगले दिन, मकर संक्रांति को करीदीन या किंक्रान के रूप में जाना जाता है जब देवी ने राक्षस किंकरासुर को मार डाला था।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। खगोलशास्त्र के मुताबिक देखें तो सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं तो उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। काशी हिंदू विश्व विद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति पहली बार 1902 में मनाई गई थी। इससे पहले 18 वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाई जाती थी। वहीं 1964 में मकर संक्रांति पहली बार 15 जनवरी को मनाई गई थी।मकर संक्रांति मनाने का मुख्य कारण भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करना है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, यह भी मकर संक्रांति मनाने का एक कारण है। मकर संक्रांति के दिन विष्णु भगवान की पूजा तो की ही जाती है।इसकी वजह यह है कि इस दिन सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और देवताओं का दिन आरंभ होता है। मकर संक्रांति पर सूर्यदेव के साथ शनि महाराज की भी पूजा की जाती है।पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में 1 अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में 1 दिन देरी से प्रवेश करता है। करीब 1,700 साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति मानी जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति के चलते यह धीरे-धीरे दिसंबर के बजाय जनवरी में आ गई है।धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं। उस समय शनि, मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। पिता सूर्य, पुत्र शनि के बीच आपसी मतभेद को दूर करने के लिए इस दिन वह शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। तभी से मकर संक्रांति मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करना बहुत अच्छा माना जाता है। इसके पीछे की भी एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है मकर संक्रांति के दिन नदियों में स्नान करना शुभ होता है। पापों को नष्ट करने के लिए भी नदी में नहाना बहुत अच्छा माना जाता है। बिहार में मकर संक्रांति को जानते हैं इस नाम से इसके अलावा असम में इसे ‘माघ- बिहू’ और ‘ भोगाली-बिहू’ के नाम से जानते हैं। वहीं तमिलनाडु में तो इस पर्व को चार दिनों तक मनाते हैं। यहा पहला दिन ‘ भोगी – पोंगल, दूसरा दिन सूर्य- पोंगल, तीसरा दिन ‘मट्टू- पोंगल’ और चौथा दिन ‘ कन्या- पोंगल’ के रूप में मनाते हैं।
(प्राचार्य, इंटर कॉलेज, डुमरांव)