यज्ञ से होता है दुख:-दारिद्र्य का नाश:-देवराहाशिवनाथ

धर्म ज्योतिष

मधेपुरा: परमपूज्य त्रिकालदर्शी, परमसिद्ध व विदेह संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज के सान्निध्य में मधेपुरा जिला के बाबा सर्वेश्वर नाथ मंदिर प्रांगण में हो रहे श्रीविष्णु महायज्ञ के चौथे दिन भक्तों की भारी भीड़ उमडी।अहले सुबह से ही यज्ञमंडप की परिक्रमा करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा।वहीं श्रद्धालुओं के द्वारा संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज की पूजा अर्चना और महाआरती की गई।पूजा अर्चना और महाआरती के बाद श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज ने कहा कि सारे जप-तप निष्फल हो जाते हैं, तब यज्ञ ही सब प्रकार से रक्षा करता है। सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति है। आज आवश्यकता है यज्ञ को समझने की। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है। यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है। वेदों का संदेश है कि शाश्वत सुख और समृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य यज्ञ को अपना नित्य कर्तव्य अवश्य समझें। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन से कहते हैं, हे अर्जुन! जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है। जिन्हें स्वर्ग की कामना हो, जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा हो उन्हें यज्ञ अवश्य करना चाहिए। यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं। यज्ञ में मुख्यत: अग्नि देव की पूजा का महत्व होता है।
यज्ञ करने वाले बड़भागी होते हैं। इस लोक में उनका दु:ख-दारिद्रय तो मिटता ही है, साथ ही परलोक में भी सद्गति की प्राप्ति होती है।वहीं इस महायज्ञ में हजारों श्रद्धालु नित्य महाप्रसाद को ग्रहण किए।वहीं इस महायज्ञ में नई दिल्ली, हजारीबाग, रांची, जमशेदपुर, धनबाद, समस्तीपुर, आरा,बक्सर, पटना, बेगूसराय, खगडिया, मधेपुरा, सहरसा सहित सूबे के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त भाग लिए।

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