बिहार के बाढ़ प्रबंधन ने भारी आपदा से लोगों को रखा है सुरक्षित

देश

  • 2008 में महज सवा लाख क्‍यूसेक पानी ने बिहार को दिखाया था जलप्रलय
  • 7 लाख से ज्‍यादा परिवार हुए थे बेघर, करीब छह सौ लोगों की गई थी जान
  • 50 लाख हेक्‍टेयर भूमि पर लगी फसल का हुआ था नुकसान, डूब गए थे 215 गांव
  • करीब 72 हजार कच्‍चे मकान और 1666 पक्‍के मकान हो गए थे जमींदोज

पटना/ सुपौल : बिहार सरकार के मुस्तैदी से बिहार बाढ़ के खतरा से बाहर होता नजर आ रहा है। नेपाल में कोसी के जलग्रहण क्षेत्रों में हुई भारी बारिश के कारण 3 बजे भोर में वीरपुर में कोसी बैराज से 462343 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। यह खबर पटना के लिए भी बड़ी थी। ये मान लिया गया था कि इतना पानी बिहार के आधे हिस्से को एक बार फिर से डुबोने के लिए काफी है। बिहार के तमाम पत्रकारों ने और मीडिया संस्थानों ने अपनी ओबी वाहनों का रुख कोसी की तरफ मोड़ दिया था। गौर करने वाली बात तो ये है कि साढ़े 4 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी तो केवल कोसी बैराज से छोड़ा गया था। इससे पहले लगातार बाल्मिकी बैराज और गोपालगंज बैराज से भी पानी छोड़ा जा रहा था। अगर पिछले चौबीस घंटे की ही बात की जाए तो बिहार की सहायक नदियों में सात लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा जा चुका था। जो सहायक नदियों के रूप में आगे आकर गंगा में आकर मिलती हैं।
सरकार की मुस्तैदी ही कही जा सकती है। नीतीश कुमार के नेतृत्व और संजय झा के जल संसाधन विभाग (कोसी) ने बिहार पर आने वाले एक बड़े खतरे को टाल दिया है। इसमें खास भूमिका जल संसाधन विभाग के मुख्‍य अभियंता मनोज रमन की भी रही। जिन्‍होंने कोसी की मुख्‍य धारा को किनारा तोड़ने नहीं दिया। इतना ही नहीं किनारे में बसे लोगों को भी बाढ़ की त्रासद स्थिति नहीं झेलनी पड़ी। जानकार मानते हैं कोसी का ये रौद्र रूप 33 साल बाद देखने को मिला है। मगर सरकार की सूझबूझ और अभियंता मनोज रमन की रणनीति ने नेपाल से चीन के इशारे पर छोड़े गए पानी के वेग को भी झेल लिया। ध्यान देने वाली बात यह भी है की बिहार की नदियां पिछले 1 हफ्ते पहले से लगातार हो रही बारिश की वजह से लबालब थी। यह माना जा रहा था कि अचानक नेपाल की ओर से छोड़े गए पानी की वजह से बिहार में बाढ़ लगभग सुनिश्चित है। यह इतना पानी था कि बिहार के लगभग 18 से 20 जिलों को डुबोने के लिए काफी था। मगर इसे सरकार की मुस्‍तैदी और तैयारी ही कही जा सकती है कि इस पानी का कोई असर बिहार में देखने को नहीं मिला। आज से 15 साल पहले यानी 18 अगस्त 2008 को जल संसाधन विभाग की ओर से नेपाल में बनाए गए बाराछद्र बैराज से महज 129800 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। मगर नेपाल में ही कुसहा के पास कोसी पूर्वी तटबंध टूट गया। जिसे कुसहा त्रासदी कहा जाता है। जिसकी वजह से बिहार ने 2008 का प्रलय झेला।
मची थी ऐसी तबाही, आज भी ताजा हैं निशान
साल 2008 में मात्र 129800 क्‍यूसेक पानी ने बिहार की तबाही की जो विनाशलीला दिखाई थी। उसके निशान आज भी मौजूद हैं। जिन लोगों ने उस तबाही का मंजर देखा था या जिया था। घटना को याद कर आज भी कांप जाते हैं। बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोसी, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया में आज भी बर्बादी की तस्‍वीरें बाढ़ की भयावहता की कहानी चीख चीख कर सुनाती हैं। सैलाब ने 7 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया था। 215 से ज्यादा गांव जलमग्न हो गए थे। ढाई लाख से ज्यादा पशु प्रभावित हुए। सरकारी आंकड़ों की ही मानें तो कोसी प्रमंडल में 526 लोगों की मौत हो गई। 1666 से ज्यादा पक्के मकान और 71568 कच्चे घर कोसी की धार में बह गए। 50 लाख से ज्यादा हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो गई। राहत कार्य खूब चला। मगर उसके 15 साल बाद भी नुकसान की जो तस्‍वीरें आज भी नजर आती हैं। वह रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है। खेतों में अब भी बालू है। जहां कभी फसलें थी अब वहां रेत ही रेत और रेत के टीले नजर आते हैं। यह बिहार पर बाढ़ की आठवीं त्रासदी थी। इससे पहले 1963, 1968, 1971, 1980, 1984, 1987 और 1991 में बिहार की एक बड़ी आबादी बेघर होने को मजबूर हो गई थी।
साल 2008 के मुकाबले इस साल कोसी बैराज से तीन गुना पानी छोड़ा गया। इसके बाद भी बिहार सुरक्षित रहा। जल संसाधन मंत्री संजय झा ने एनबीटी से बात करते हुए बताया कि ‘नीतीश कुमार और मेरा विभाग लगातार नेपाल से आने वाले पानी की मॉनीटरिंंग कर रहा था। पल पल की स्थिति की गहनता से जांच की जा रही थी। पानी का दबाव हो या नेपाल से आने वाले पानी की मात्रा एक एक चीज पर देखी जा रही थी। संजय झा ने कहा कि यह सरकार की सतर्कता का नतीजा था कि 33 साल का रिकॉर्ड टूटने के बाद भी बिहार को बाढ़ के खतरे से बचा लिया गया। इसे उपलब्‍धी कही जा सकती है। जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा कि हम लगातार बिहार को बाढ़ से बचाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बार नदियों गाद भी कम था। जिसकी वजह से फ्लश वाटर को निकालने में परेशानी नहीं हुई।’ बताते चलें, सोमवार को सुबह 3 बजे पानी छोड़े जाने के बाद उसी दिन संजय झा कोसी बैराज पर मौजूद थे। नेपाल से आने वाले पानी का वेग बहुत ज्यादा था। मगर ये पानी तेजी से निकल गया।

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