- मनोज कुमार श्रीवास्तव
म्यांमार में लगातार सशस्त्र संघर्ष थमने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है।वहां लगातार हो रहे जानमाल के नुकसान के साथ-साथ राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो रही है जिससे पड़ोसी देशों की चिंताएं बढ़ती जा रही है।चीन और भारत बराबर म्यांमार की स्थिति पर नजर रख रहे हैं।म्यांमार के चीन बार्डर से मिलते हुए शान प्रांत और आसपास के क्षेत्रों में लगातार झड़पें और हिंसा हो रहा है।तीन जातियों समूहों के सशस्त्र गठबंधन ने आंग मिन ह्वाइंग के नेतृत्व वाले जुंटा शासन के खिलाफ संघर्ष छेड़ रखा है।
जुंटा कहे जाने वाले म्यंमार के सैन्य शासन भी इस भीषण प्रतिरोध को खत्म करने के लिए कोशिश कर रहे हैं।जून्टा के लिए सबसे बड़ी समस्या पैसे की कमी है क्योंकि कमर्शियल रूट विद्रोहियों ने कब्जे में लेकर अवरुद्ध कर दिए हैं।विद्रोहियों ने कियन सैन्य क्यावत में सीमा व्यापार क्षेत्र में भी अपना झंडा फहराया है।कियन सैन्य क्यावत म्यांमार चीन सीमा पर एक प्रमुख व्यापारिक बिंदु है।यहीं से मशीनरी, विधुत उपकरण, कृषि ट्रैक्टर और उपभोक्ता वस्तुएं देश में आती है।म्यांमार में भड़क रही हिंसा से घबराया चीन काफिले में आग के बाद बार्डर पर शुरू किया युद्धाभ्यास।
चीन अपने नागरिकों से उत्तरी म्यांमार छोड़ने का आग्रह किया है।म्यांमार में अशांति का असर भारत पर भी पड़ा है।म्यांमार की सैनिक जातिय विद्रोहियों से बचने के लिए नवम्बर के शुरुआती समय में भारत में घुस आए थे।भारत उनमें से अधिकांश को उसी सप्ताह के भीतर एक अन्य सीमा पार से वापस भेज दिया था।विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 17 नवम्बर को कहा कि भारत म्यांमार में स्थायी शांति की कामना करता है और हिंसा की वृद्धि पर चिंतित है।हम म्यांमार में शांति,स्थिरता और लोकतंत्र की वापसी के लिए अपना आह्वाहन दोहराते हैं।
हिंसा से भागकर म्यांमार से करीब 5,000 लोग मिजोरम में आ गये हैं।ये लोग म्यांमार सिमा के पास मिजोरम के दो गांवों में शरण ली है।भारत के उत्तर-पूर्व के सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव फैलने को लेकर चिंतायें बढ़ रही है।ऐसे में भारत की स्थिति पर लगातार नजर है।म्यांमार में फैल रही अशांति कई कारणों से नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ाएगी।एक जो पहले से ही सामने आ रहा है वह है म्यांमार से मिजोरम में शरणार्थियों की आमद।यदि पड़ोसी देश में स्थिति स्थिर नहीं हुई तो यह धारा बाढ़ में तब्दील हो सकती है।भारत का सुरक्षा प्रतिष्ठान भी चिंतित होगा क्योंकि नशीली दवाओं का व्यापार कुख्यात गोल्डन ट्रायंगल जिसकी धुरी म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुये फलफूल सकता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ सकता है।
भारत की चिंता यह है कि चीन म्यांमार के विद्रोहियों के जरिए पूर्वोत्तर भारत में अशांति फैला सकता है।विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग गुप्त रूप से विद्रोही समूहों और पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोहियों के समर्थन कर रहा है।कई विद्रोही नेताओं की चीन ने मेजबानी की और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया है।म्यांमार में सेना और विद्रोही गुट पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस के बीच लड़ाई जारी है।
म्यांमार से आये शरणार्थियों को जिला प्रशासन, NGO की ओर से इन शरणार्थियों की मदद की जा रही है।यंग मिजो एसोसिएशन के फाइनेंशियल सेक्रेटरी एफ बिहाक्तिसांगा ने बताया कि कुछ गैर सरकारी संगठनों और प्रशासन की ओर से इनकी मदद की जा रही है।मिजोरम के आईजी लालबियाकथंगा खियांगते ने बताया कि म्यांमार के लगभग 5 हजार लोगों ने राज्य के दो सीमावर्ती गावों में शरण ली है।शरणार्थियों के कहना है कि वे अपने पैतृक गांव लौटने के लिए उत्सुक हैं लेकिन चल रही झड़पों के कारण वे ऐसा करने से डर रहे हैं।
मिजोरम सरकार और वाइएमए एक सरकारी संगठन ने हमारी मदद की है और हमारे लिए यहां शिविर लगाने की व्यवस्था की है, हम उनके आभारी हैं।नई दिल्ली के साथ ऐतिहासिक रूप से खराब सम्बन्धों वाले क्षेत्र म्यांमार की सीमा से लगे भारत के सुदूर उत्तर-पूर्व में समस्याएं लौट आयी है।भारत को डर है कि म्यांमार विद्रोहियों को फिर से संगठित होने के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान कर सकता है।क्योंकि उसे यह भी संदेह है कि प्रतिद्वंद्वी चीन अलगाववादी समूहों का समर्थन करता है।म्यंमार में लाखों लोग भूख का सामना कर रहे हैं और हजारों लोग म्यांमार के अन्य हिस्सों या सीमा पार भाग गए हैं।सीएफआर के जोशुआ कुलारटजिक का कहना है कि तख्तापलट के कारण म्यांमार एक लोकतांत्रिक सुधारों की उम्मीदों को धराशायी कर दिया।म्यांमार अब एक हिंसात्मक नए अध्याय में प्रवेश कर चुका है सेना जिसे टाटमाडा के नाम से जाना जाता है।