“मैं दिलखुश कुमार एक गरीब परिवार से आता हूँ, पिता जी परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। घर का सारा खर्च वही उठाते थे, इसलिए लोग मुझे निकम्मा कहने लगे। मैं 12वीं में था जब मुझे पढ़ाई बीच में छोड़कर परिवार की ज़िम्मेदारियां अपने कंधों पर लेनी पड़ीं।
नौकरी की तलाश में मैं गार्ड की पोस्ट के लिए पटना में इंटरव्यू देने गया था। वहाँ मुझे अनपढ़ और अशिक्षित समझकर रिजेक्ट कर दिया गया। फिर मैंने गाँव में ही गाड़ी चलाने का काम शुरू किया, लेकिन उसमें कुछ कमाई नहीं थी इसलिए दिल्ली आ गया। यहाँ मैंने एक रिक्शा खरीदा और चलाना शुरू कर दिया। सोचा था, घर में पैसे भेज सकूंगा लेकिन वो भी न हो सका। एक महीने में ही मेरी काफी तबियत खराब हो गई और मुझे वापस गाँव लौटना पड़ा। यहाँ आकर रिश्तेदारों और लोगों के कई ताने सुनने पड़े।
Ola और Uber जैसी कैब सर्विसेज उस समय काफ़ी प्रचलित हो रही थीं; इसे देखकर मैंने भी ऐसा ही कुछ शुरू करने का सोचा। जितने पैसे बचाए थे, उससे एक सेकंड हैंड गाड़ी खरीदी और पटना में चलाना शुरू कर दिया। जहाँ ये बड़ी-बड़ी कंपनियां लोगों से अच्छा-ख़ासा किराया लेती थीं, वहीं मैंने एक किफ़ायती रास्ता निकाला।
मैंने एक ऐसा तरीका ढूंढा जिससे हाई डिमांड वाले रास्तों पर लोग डायरेक्ट और कम समय में, वहां मौजूद ड्राइवर से खुद संपर्क कर सकें। और फिर अपना स्टार्टअप Rodbez लांच कर दिया। यह स्टार्टअप बाकी टैक्सी कंपनियों की तरह नहीं है; यह एक डेटाबेस कंपनी है जो ग्राहकों को टैक्सी ड्राइवरों से जोड़ती है।
कंपनी को लॉन्च करने के छह से सात महीने बाद दिलखुश और उनकी टीम ने 4 करोड़ रुपये जुटा लिए। ड्राइवरों को दिया जाने वाला कंपनसेशन Rodbez का सबसे आकर्षक पहलू है। दिलखुश ड्राइवरों की परिस्थितियों को जानते हैं। उनकी कंपनी ड्राइवरों को 55,000 से 60,000 रुपये मासिक वेतन देती है।
अपने कारोबार को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कभी सब्जी बेचने और रिक्शा चलाने वाले दिलखुश आज IIT और IIM ग्रेजुएट्स तक को अपनी कंपनी में हायर करते हैं। अपनी मेहनत के दम पर आज करोड़ों की कंपनी के मालिक दिलखुश कुमार कई लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं।