कायस्थ समाज की सोच समाजवादी, वंशवादी नहीं : डॉ. रणबीर नंदन

आलेख

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर भी खूब राजनीति हुई। इस राजनीति के केंद्र में बिहार रहा। गृह मंत्री अमित शाह आए, अपनी बातों में उन्होंने जदयू पर निशाना साधा। दूसरी ओर सीएम नीतीश कुमार कलम दवात क्लब की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए, जिसका शीर्षक था “जेपी की कहानी, नीतीश कुमार की जुबानी”। कार्यक्रम के संयोजक जदयू के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणबीर नंदन का कहना है कि जेपी का व्यक्तित्व किसी सीमा में नहीं बंधा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनका स्नेह जगजाहिर रहा है। इसलिए इस कार्यक्रम की सार्थकता कहीं अधिक है। प्रस्तुत है डॉ. रणबीर नंदन से बातचीत के मुख्य अंश…

प्रश्न : “जेपी की कहानी, नीतीश कुमार की जुबानी” कार्यक्रम से आपका मकसद क्या रहा?

उत्तर : जेपी की कहानी वो बिल्कुल नहीं सुना सकता, जिसे उनके बारे में पता ही नहीं है। आज की परिस्थितियों में जेपी की क्रांतिकारी छवि की आवश्यकता अधिक प्रासंगिक है। जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। उस नारे का असर क्या रहा, यह सभी को पता है।

प्रश्न : तो इसके लिए नीतीश कुमार को ही क्यों चुना गया? क्या जेपी के राजनीतिकरण का प्रयास जदयू नहीं कर रहा?

उत्तर : जेपी राजनीतिक व्यक्ति थे। पूरा देश जानता है कि जेपी के आंदोलन ने देश को दलीय तानाशाही से बचाया था। संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने भारत के लोकतंत्र पर प्रहार करने वालों के लिए गंभीर चेतावनी दी थी। वह चेतावनी अजर अमर है और जब भी तानाशाही अपना सर उठाएगी जेपी के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन देश को बचाने के लिए खड़ा होगा। सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन जेपी का करीब से सहयोग नीतीश कुमार ने किया था। तो जेपी की कहानी, नीतीश कुमार से बेहतर कौन बताएगा।

प्रश्न : इस कार्यक्रम का आयोजन कलम-दवात क्लब की ओर से आयोजन हुआ और शामिल होने वालों में भी कायस्थों की संख्या अधिक थी। तो क्या जदयू कायस्थों की गोलबंदी का प्रयास कर रही है?

उत्तर : यह सत्य है कि जेपी कायस्थ थे लेकिन उससे बड़ा सत्य यह है कि जेपी ने जाति की राजनीति कभी नहीं की। बिहार की राजनीति में जेपी आंदोलन से सभी वर्ग के और सभी जातियों के नेता उभरे। किसी एक जाति का नेता नहीं उभरा। अगड़े, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, हिंदू, मुसलमान, अन्य धर्मों के लोग हों, जेपी आंदोलन में सभी लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आपातकाल के खिलाफ भाग लिया था। और सभी लोगों को सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व मिला था। तब जाकर आज भारत की राजनीति का गणित सर्वहारा की ओर बढ़ रही है।

प्रश्न : लेकिन इस कार्यक्रम में कायस्थों का जुटान होने का कोई न कोई राजनीतिक संदेश तो जरुर होगा?

उत्तर : कायस्थ जाति की प्रवृति समाजवादी रही है। कायस्थ समाज प्रारंभ से सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सद्भाव का बहुत बड़ा हिमायती रहा है। जेपी के लिए भी सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सद्भाव महत्वपूर्ण था। इसलिए कायस्थों की भागीदारी रही है।

प्रश्न : लेकिन कायस्थ समाज तो भाजपा को वोट करता रहा है।

उत्तर : ये गलतफहमी है। क्योंकि कायस्थ समाज हमेशा से तटस्थ रहा है। सभी धर्मों को मानने वालों के साथ कायस्थ समाज के लोगों का सामंजस्य रहता है। आपातकाल में जेपी के साथ जो व्यवहार हुआ, उसके कारण भारत का कायस्थ समाज तत्कालीन सत्ता के प्रति आंदोलित हो गया। भाजपा ने इस समाज के वोट को टेकेन फॉर ग्रांटेड ले लिया। लेकिन यह सोच बदल रही है।

प्रश्न : लेकिन कायस्थों को टिकट भाजपा ही देती है?

उत्तर : ये कहना गलत होगा। क्योंकि भाजपा ने उन कायस्थों को ही टिकट दिया है, जो वंशवाद की जड़ से निकले हैं। बिहार की ही राजनीति में देख लीजिए तो कायस्थ जाति का हर नेता वंशवाद की ही देन है। आने वाले वक्त में जिन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है, उसका आधार भी वंशवाद ही है। आम कायस्थ कार्यकर्ताओं को भाजपा ने कुछ नहीं दिया। इस कार्यक्रम ने कायस्थ जाति के बीच निश्चित रूप से यह संदेश दिया है कि हम किसी भी दल के बंधुआ मजदूर बनने से परहेज करें।

प्रश्न : तो कायस्थ समाज वंशवाद का खुलकर विरोध क्यों नहीं करता?

उत्तर : कायस्थों के जितने नेता हुए, उन लोगों ने अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं बनाया। जितने भी महान नेता हुए हैं, चाहे राजेंद्र बाबू हों या लाल बहादुर शास्त्री या फिर जेपी, ये सभी सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सद्भाव की पृष्ठभूमि से हुए हैं। वंशवाद से इनका दूर दूर तक नाता नहीं है। जबकि भाजपा के कायस्थ नेताओं की बात करें तो किसी भी कायस्थ के अच्छे नौजवान जो राजनैतिक जीवन में सफल हो सकते थे, उनको कभी आगे नहीं आने दिया।

प्रश्न : समाजवादियों में वंशवाद नहीं है?

उत्तर : जनता दल यूनाइटेड का इतिहास देख लें, यहां वंशवाद का नामोनिशां नहीं है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार, सामाजिक अन्याय, जाति व्यवस्था, नर नारी विषमता के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का आंदोलन शुरू किया था। तो उस आंदोलन से मथ कर निकलने वाली पार्टी या नेता वंशवाद को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं। मैं जदयू का समर्पित कार्यकर्ता हूं। हमारे दल में वंशवाद का कोई नामोनिशां तक नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *