हिंदी को लेकर मोदी सरकार की चिंता खोखली, केंद्र सरकार पर अंग्रेजियत सवार : डॉ. रणबीर नंदन

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पटनाः     जनता दल (यू) के प्रदेश प्रवक्ता एवं पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणवीर नंदन ने विश्व हिंदी दिवस पर राजभाषा हिंदी संसदीय समिति के अध्यक्ष अमित शाह पर हमला बोलते हुए कहा कि अमित शाह अगर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए इतने ही सजग हैं तो उनको इसकी शुरुआत अपने गृह राज्य गुजरात से करनी चाहिए, जहां प्रदेश का कोई भी प्रशासनिक कार्य हिंदी में नहीं होता है। 2019 के हिंदी दिवस के अवसर पर अमित शाह ने एक राष्ट्र – एक भाषा का नारा दिया था, लेकिन क्या अमित शाह बताएंगे कि गुजरात उनके एक राष्ट्र – एक भाषा के नारे से बाहर है क्या ? असल बात यह है कि मोदी सरकार की हिंदी के प्रति चिंता खोखली है और उन पर अंग्रेजियत सवार है।

डॉ. नंदन ने पूछा है कि क्या गृहमंत्री जी यह बताएंगे कि प्रधानमंत्री जी के भाषणों में डबल इंजन, 5पी (परफ़ॉर्मेन्स, प्रोसेस, पर्सन, प्रोक्योर्मेंट और प्रिपेयर), 3 टी ( टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट)  4 टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट और टीका), 5टी (टैलेंट, ट्रेडिशन, टूरिज़्म, ट्रेड व टेक्नोलॉजी),  3 आई (इंसेंटिव्स, इमेजिनेशन और इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग), FDI (फ़र्स्ट डेवलप इंडिया) जैसे शब्द हिंदी में नहीं हो सकते थे क्या ? या 2014 के चुनाव में भाजपा की अमेरिकी प्रचार एजेंसी APCO Worldwide का असर अब भी मोदी जी के ऊपर हावी है।

 उन्होंने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ तो हिंदी के प्रति घडियाली आंसू बहाती है, दूसरी तरफ भारतीय भाषाओं के लिए बजट आवंटन राशि को लगातार कम कर रही है। 2019-20 के बजट में मोदी सरकार ने भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए 561.47 करोड़ रूपये आवंटित किए थे, जिसे घटाकर मोदी सरकार ने  2022-23  में मात्र 250 करोड़ रुपए कर दिया।

डॉ. नंदन ने कहा कि सितम्बर 2022 में जब समिति की 11वीं रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी तो उसमें यह सुझाव दिया कि सरकारी विज्ञापनों का 50% से अधिक हिस्सा बड़े आकार में और मुख्य पृष्ठ पर हिंदी में दिया जाना चाहिए, जबकि अंग्रेजी विज्ञापन छोटे आकार और आखिरी पन्नों पर होनी चाहिए। साथ में यह भी सुझाव दिया गया कि जो सरकारी अधिकारी जान बूझकर हिंदी का प्रयोग नहीं या कम करते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।

उन्होंने कहा कि क्या गृह मंत्री जी यह बताएंगे कि अभी तक सरकार के सभी मंत्रालयों एवं विभागों में हिंदी सलाहकार समिति का गठन क्यों नहीं किया गया है? जिनका गठन किया जा चुका है, उनकी नियमित बैठकें क्यों नहीं आयोजित की जा रही हैं? जबकि होना तो ये चाहिए कि कम से कम साल भर में दो बैठकें एवं एक सम्मेलन  होना चाहिए।

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