पटना: पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणबीर नंदन ने बाबा बागेश्वर से एक प्रश्न किया है कि “एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बोला, एक राम रचा संसारा, एक राम है सबसे न्यारा”, इसमें असल राम कौन है? दूसरा, सिद्धियों की करामात प्रकृति के विरोध में है। लगता है बाबा बागेश्वर कर्ण पिशाचिनी सिद्धी से भूतकाल बताते हैं। वैसे भी कर्ण पिशाचिनी सिद्धी भूतकाल बताती है। लेकिन भविष्य नहीं बताती है। इसलिए बाबा भूतकाल बताते हैं लेकिन भविष्य बताने में कन्फ्यूज हो जाते हैं। बड़े बड़े जितने महात्मा हुए, चाहे वो आदि गुरु शंकराचार्य, तैलंग स्वामीजी, रामकृष्ण परमहंस और अवधूत बालानंद ब्रह्मचारी, बामा खेपा, स्वामी विवेकानंद इन लोगों ने कभी भी सिद्धियों का प्रयोग नहीं किया। और इनका लोहा सभी धर्म के लोग मानते थे। हनुमान चालीसा में है “और देवता चित्त न धरहि, हनुमत सेई सर्व सुख करई”। मतलब, और देवता जल्दी प्रसन्न नहीं होते लेकिन हनुमान जी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। तब बाबा पर्ची का नाटक क्यों कर रहे हैं। तुलसीदास जी का ब्राह्मणों ने विरोध कर दिया कि ये झूठ-मूठ का ग्रंथ लिख रहे हैं। लेकिन तब तुलसीदास ने कहा कि जो मुगलकालीन संत थे, यदि तुम मुझे मंदिर में नहीं रहने दोगे तो मैं मस्जिद में रहकर रामचरितमानस का निर्माण करूंगा। तो वैसे संत ने भक्ति के आगे धर्म को आने नहीं दिया। और संत बागेश्वर धर्म निरपेक्ष देश में भक्ति को न जगाकर धर्म का उन्माद पैदा कर रहे हैं। यदि सिद्धियों का दुरुपयोग होगा, तो अच्छे अच्छे साधकों का पतन हो जाता है। वही हाल इनका होगा।