- रविरंजन आनंद सिंह (स्वतंत्र पत्रकार)
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार सत्ता में अपनी महत्ता को बनाएं रखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ प्रयोग करते रहते है। चाहे एनडीए से महागठबंधन में जाना हो या फिर महागठबंधन से एनडीए में आना हो या अचानक मांझी का मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय हो। इस बार आनंद मोहन को जेल से निकाल कर एक नया समीकरण सांधने के जुगत में लगे है। नीतीश कुमार के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। नीतीश के बारे में कुछ कहने के पीछे कुछ कारण जरूर होता है। मात्र तीन फीसदी जाति वाले नीतीश कुमार आज बिहार में 16 सालों से राज्य के सीएम के कुर्सी पर बैठे है। कोई भी परिस्थति हो, चाहे राजनीतिक संकट हो, गठबंधन में विरोध हो या महागठबंधन में हो या फिर एनडीए में……मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही रहेंगे।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नीतीश ने बिहार में सुशासन का मॉडल दिया है। विशेष तौर पर लोग नीतीश कुमार के 2005 से 2010 के शासन काल को याद करते है, जहां लालू-राबड़ी शासन काल में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुका था। वहीं 2005 में नीतीश ने बिहार की बागडोर संभालते ही कानून-व्यवस्था को सुद्दढ़ बनाने के लिए कठोर कदम उठाएं। वहीं राज्य के विकास के साथ-साथ अपने वोट बैंक को मजबूत करना भी नीतीश कुमार की अहम प्राथमिकता रही। आज भी नीतीश कुमार उसी धरे पर काम करते दिखाई दे रहे है, चाहे जातीय गणना हो या आनंद मोहन का जेल से रिहाई हो। अभी तक नीतीश कुमार का आकलन किया जाए तो वह अपने हर राजनीतिक मुकाम में सफल रहे। हालांकि नीतीश कुमार को इस बात का मलाल जरूर रहा है कि बीजेपी के कोर वोटर में कभी सेंध नहीं लगा पाएं, साथ ही सवर्ण जाति कभी नीतीश के कोर वोटर नहीं हो पाएं। जैसे लालू के साथ एक समय में राजपूत समाज के नेता तो थे ही वोटर भी थे, हालांकि अब नहीं है। नीतीश कुमार के सत्ता के दिन से ही सवर्ण जाति में भूमिहार जाति के नेता इनके नजदीक जरूर रहे, लेकिन इस जाति के वोटर इनके नजदीक नहीं हुए। हां भूमिहार वोटर नीतीश के साथ बीजेपी के नाम पर जरूर गए। नीतीश 2005 में सत्ता में आने के बाद से ही पिछड़ा,अतिपिछड़ा,दलित व महादलित और पसमांदा जैसे समीकरण इजाद कर लालू के वोटर में सेंध लगा चुके है, लेकिन आज तक बीजेपी के कोर वोट में कभी सेंध नहीं लगा पाएं। देखा जाए तो नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दशक में चल रहे है। नीतीश प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री उम्मीदवार बने या न बने वो हर हाल में बीजेपी को बिहार से बाहर का रास्ता दिखाना चाह रहे है, यही उनका मुख्य उदेश्य है। आनंद मोहन की जेल से रिहाई भी इसी उदेश्य की पूर्ति का एक प्रयास है। आनंद मोहन के बहाने नीतीश बीजेपी के वोटों में सेंध लगाने का प्रयास शुरू भी कर चुके है। आनंद मोहन जेल से निकलते ही पूरे बिहार में राजपूत समाज के बीच जाकर राजपूत वोटरों का मन टटोलने का प्रयास किया कि यह समाज बीजेपी को छोड़ सकता है कि नहीं। दो-तीन माह घूमने के बाद आनंद मोहन को यह लग गया कि राजपूत वोटरों को बीजेपी से अलग करना बहुत ही मुश्किल है। कई जगह तो राजपूत समाज के लोगों ने आनंद मोहन को सलाह तक दे दिया कि आप बीजेपी के साथ आ जाएं हम आपके साथ है, नीतीश के साथ कभी नहीं है। नीतीश कुमार पर यह हमेशा से सवर्ण विरोधी विशेष तौर पर राजपूत विरोधी होने का आरोप भी लगता रहा है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्व रेल राज्य मंत्री स्व दिग्विजय सिंह,पूर्व सांसद स्व अजित सिंह के जीवन के अंतिम समय में नीतीश कुमार से संबंधों में खटास आ गए थे। वहीं प्रभुनाथ सिंह, विजय कृष्ण, नरेन्द्र सिंह, रामबिहारी सिंह समेत अन्य राजपूत नेताओं को नीतीश कुमार ने हाशिए पर पहुंचा दिया। अब वहीं नीतीश कुमार आनंद मोहन के सहारे राजपूतों को अपने पाले में लाना चाह रहे है। आनंद मोहन को यह बात जब समझ में आ गयी कि राजपूत समाज बीजेपी का साथ नहीं छोड़ सकता तो आनंद मोहन ने राज्यसभा में मनोज झा की ओर से दिए गये बयान ‘ ठाकुर का कुआं ‘ पर राजपूत समाज को गोलबंद करने की कोशिश की। चेतन और आनंद मोहन के बयान के बाद करीब-करीब पूरे देश में कई राजपूत संगठनों ने मनोज झा के इस बयान पर आपत्ति जातायी, लेकिन क्या राजपूत समाज आनंद मोहन को अपना नेता मान लेगा! इसकी संभावना बहुत ही कम है। जब बिहार में आनंद मोहन एक राजपूत नेता के तौर पर उभर रहे तो वह दौर नब्बे का दशक था, जहां सत्ता का स्थानांतरण पूरे देश में अगड़े जाति से निकल कर पिछड़ों के बीच जा रही थी। आज सत्ता के केंद्र बिन्दु पर पिछड़े समाज के ही लोग काबिज है। आज वर्तमान परिवेश में सत्ता की लड़ाई अगड़ों और पिछड़ों के बीच नहीं है, पिछड़ों और पिछड़ों के बीच है। ऐसे में अगड़े समाज के लोगों को जिस पिछड़े समाज के कुनबे में उन्होंने सहूलियत मिलेगी वो उन्हीं के साथ रहना पंसद करेंगे। विशेष तौर पर बिहार में जबसे जातिय गणना का परिणाम आया है तब सवर्ण जाति नीतीश कुमार का मुखर होकर विरोधी कर रही है। नीतीश कुमार हर हाल में आनंद मोहन को राजपूत नेता के तौर पर स्थापित करने में लगे है। इसी अभियान के तहत नीतीश कुमार 27 अक्टूबर को आनंद मोहन के गांव सहरसा के पंचगछिया में उनके दादा की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में पहुंचे थे। जहां उन्हें स्पष्ट तौर पर कहा कि आनंद मोहन जी से बहुत पुराने रिश्ते है, ये जेल में थे तो हम बहुत दुखी थे, साथ ही कहा कि आनंद मोहन जी स्वंतत्र होकर राजनीति में जो करना चाह वो करे हम उनका पूरा सहयोग करेंगे। नीतीश कुमार ने अपने इस बयान से राजपूत समाज में एक संदेश देना चाहा कि आनंद मोहन को जेल बाहर मैंने निकला और मैं आनंद मोहन के साथ हर परिस्थति में खड़ा हूं। राजपूत समाज को भी आनंद मोहन को अपना नेता मान लेना चाहिए, आनंद मोहन का कद नब्बे का दशक वाला ही है। अब आने वाले लोकसभा चुनाव में ही पता चल पायेगा कि आनंद मोहन नीतीश कुमार के लिए कितना कारगर साबित होते है।
परिचय : रविरंजन आनंद (स्वतंत्र पत्रकार) पूर्व वरिष्ठ उपसंपादक प्रभात खबर, हिंदुस्तान
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कार्य- अलग वेबसाइट पर जैसे, आइचौक daink Bhaskar.com, जनसत्ता में ब्लॉग साथ ही अन्य प्लेटफार्म पर विशेष तौर पर बिहार- उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लिखना।