- आचार्य मोहित पाण्डेय, लखनऊ
पौराणिक कथाओं में आठ ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जो अमर हैं अर्थात जो मृत्यु के बंधन से मुक्त हैं और कलियुग में भी जीवित हैं। इन्हें सप्त चिरंजीवी कहा जाता है। चिरंजीवी यानी चिर काल तक जीवित रहने वाला। सप्त चिरंजीवियों में पवनसुत श्री राम दूत हनुमान जी, शिव भक्त भगवान श्री परशुराम जी, अश्वत्थामा, ऋषि कृपाचार्य जी, महर्षि वेदव्यास जी, दशानन रावण के भाई विभीषण जी और राजा बलि शामिल हैं। इनके साथ एक और चिरंजीवी हैं, ऋषि मार्कण्डेय जी। ऋषि मार्कण्डेय आठवें चिरंजीवी कहे जाते हैं।
पद्म पुराण के एक श्लोक से इन सप्त चिरंजीवियों के जीवित होने के बारे में बताता गया है। यह श्लोक है :
(अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥)
इसका अर्थ हैं : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम सप्त चिरंजीवी हैं। इन सात के साथ मार्कण्डेय ऋषि, यानी अष्ट चिरंजीवी के नाम का जाप करने से व्यक्ति निरोगी रहता है और लंबी आयु को प्राप्त करता है। जो भी इन चिरंजीवियों के नाम का जाप करता है, वह शतायु हो जाता है। अर्थात् उसकी आयु सौ वर्ष की होती है। उसे इन्हीं की तरह ही ओज और तेज, विवेक, बुद्धि एवं भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है।
- आचार्य मोहित पाण्डेय, लखनऊ
ज्योतिष विज्ञान एवं भविष्य दर्शन।
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