-मनोज कुमार श्रीवास्तव
हमारे पड़ोस में बांग्लादेश इकलौता लोकतांत्रिक देश है जो लगातार अपने नागरिकों को लोकप्रिय सरकार चुनने का मौका दे रहा है।इतना ही नहीं फौज की एकाधिक हिमाक़तों को वहाँ शिकस्त कहानी पड़ी।यह बात सत्य है कि भारत के प्रति विशेष अनुराग रखने वाली शेख हसीना को पाकिस्तान बौर उसके मित्र देश तानाशाह साबित करने में लगे रहते हैं।बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी(बांग्लादेश नेशनल पार्टी) द्वारा चुनावों का बहिष्कार लगातार करना दुखद है।इससे लोकतंत्र की आभा थोड़ी मलिन जरूर पड़ती है लेकिन इसके लिए हसीना सरकार को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा।
लोकतंत्र में जनता मालिक है और बांग्लादेश की जनता हसीना सरकार से खुश है तो जरूर इसकी कोई वजह होगी।किसी भी देश की लोकतंत्र की अर्थव्यवस्था निखर रही है तो निश्चित रूप से वहां की जनता सरकार की छोटी-मोटी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं।और यही बात अवामी लीग सरकार के हक में है।शेख हसीना अपने ही पहले कार्यकाल में एक खूबसूरत सांविधानिक व्यवस्था बनाई थी कि आम चुनाव एक कार्यवाहक सरकार की देखरेख में होंगे।मगर जब इस व्यवस्था के बाद चुनाव जीतकर बीएनपी सत्ता में आई तो अगले आम चुनाव के समय उसने मनमानी करने की कोशिश की बावजूद इसके वह चुनाव हार गई।तब उसने भारत पर दोषारोपण शुरू कर दिया कि नई दिल्ली ने हसीना को जिताने में मदद की है।
सच है कि बंगबंधु की बेटी लोकतांत्रिक है।भारत की तरक्की और पाकिस्तान की बदहाली की काफी करीब से देख रही है।वह जानती है कि तकदीर इसी शासन व्यवस्था से सँवर सकती है वहीं बीएनपी को सिर्फ कट्टरपंथ पर भरोसा है।एक समय दुनिया के सबसे गरीब देशों में शुमार बांग्लादेश आर्थिक मोर्चे पर 2009 से शेख हसीना के नेतृत्व में लगातार दुनिया को चौंका रहा है।विश्वबैंक का कहना है कि पिछले दो दशक में करीब ढाई करोड़ बांग्लादेशी गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं।इसलिए हताश विपक्ष शेख हसीना को तानाशाह बताता है।
वर्ष 2006 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता,83 वर्षीय प्रो0 मोहम्मद यूनुस को भी शेख हसीना की आलोचनाओं की कीमत चुकानी पड़ी है।मोहम्मद यूनुस की कई कम्पनियों में से एक, ग्रामीण टेलिकॉम के तीन सहयोगियों को श्रम कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाया गया।पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून सहित 160 अंतराष्ट्रीय हस्तियों ने एक साझा पत्र जारी किया था और यूनुस के “निरंतर न्यायिक उत्पीड़न” की निंदा की थी।मोहम्मद यूनुस ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि बांग्लादेश में स्थापित 50 से भी अधिक सामाजिक व्यावसायिक कम्पनियों में से से किसी से भी उन्होंने लाभ नहीं कमाया है।
भरष्टाचार के एक मामले में 17 साल की सजा भुगत रही बीएनपी की पूर्व प्रधानमंत्री खलिदा जिया को जेल में सही उपचार नहीं मुहैया कराया गया जिसका नतीजा हुआ कि उनकी सेहत ज्यादा बिगड़ गई तब उन्हें जेल से निकाल कर घर में नजरबंद कर दिया गया।इलाज के लिए विदेश जाने की इजाजत नहीं दी गई। आखिर 80 साल की की एक बीमार राजनेता से इतना खौफ क्यों है।इससे साबित होता है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र न होकर शेख हसीना का एकछत्र राज है।शेख हसीना को केवल चुनाव से हीं सन्तोष नहीं होता है बल्कि उनके जो भी आलोचक हैं उन्हें वो ठिकाने लगाती जा रही हैं।सच्चाई यह है कि शेख हसीना अपने देश में वही लोकप्रियता हासिल कर ली है जो आज हमारे यहां नरेन्द्र मोदी की है और कभी पंडित नेहरू व इंदिरा गांधी गांधी की थी।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जिस तरह से देश की सियासत का संचालन कर रही है उसे देखकर रूसी तानाशाह व्लादिमीर पुतिन और चीन के सदर शी जिनपिंग भी शेख हसीना के आगे खुद को बौना पाएंगे।आगामी रविवार को बांग्लादेश में आम चुनाव होने जा रहे हैं।यह तीसरा आम चुनाव होगा जिसमें मुख्य विपक्षी दल बीएनपी को हिस्सा न लेने को बाध्य कर दिया है।।ठीक उसी तरह जैसे क्रेमलिन के अगले चुनाव में एकमात्र उम्मीदवार पुतिन होंगे।। विशलेषकों की माने तो एक बार फिर वहां सत्ता की बागडोर अवामी लीग व शेख हसीना के हाथों में आ सकेगी है।हालांकि ये कयास हैं ,चुनाव में कुछ भी हो सकता है।