बिहार के महिला कॉलेजों,अल्पसंख्यक कॉलेजों एवं विकसित आधारभूत संरचना वाले कॉलेजों को प्राथमिकता के आधार पर अंगीभूत करने की सरकार से मांग
शाहाबाद ब्यूरो
नई शिक्षा नीति के लागू हो जाने और च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम के तहत स्नातक के चार वर्षीय कोर्स शुरू कर दिए जाने से शिक्षकों पर बढ़े दबाव के बावजूद वित्त संपोषित कॉलेजों के शिक्षकों को समय पर अनुदान नही देने एवं नियत वेतनमान देने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है।वित्त अनुदानित या वित्त संपोषित डिग्री कॉलेजों में स्वीकृत और अनुशंसित पदों पर नियुक्त और कार्यरत शिक्षकों के संघ ने अब अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है।ऐसे शिक्षकों को शैक्षणिक कार्य करने के बावजूद वर्षों से अनुदान की राशि नही दी गई है।छात्र छात्राओं को पढ़ाने, प्रैक्टिकल कराने, वीक्षक के तौर पर परीक्षाएं लेने,उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने,मूल्यांकन किये गए उत्तरपुस्तिकाओं से सम्बंधित छात्र छात्राओं का मार्क्स फॉइल तैयार करने और रिजल्ट बनाने तक के अहम कार्यों को पूरा कर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार की प्रतिष्ठा राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाने एवं बिहार राज्य को गौरवान्वित करने वाले शिक्षकों को समय पर अनुदान नही देना और ऐसे शिक्षकों को किसी तरह का वेतनमान नही देना राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था के संचालन पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय समेत बिहार के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं का बड़ा बोझ वित्त अनुदानित कॉलेज ही उठा रहा है।अगर वित्त रहित कॉलेजों को छोड़ कर बात करें तो अंगीभूत कॉलेजों के पास न इतनी सीटें हैं और न आधारभूत संरचना ही है कि वह स्नातक के लिए नामांकन लेने आने वाले छात्रों के बड़े बोझ को पूरा करने या उठाने में सक्षम है।उदाहरण के रूप में देखा जाय तो एक तरफ जहां वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में जहां 17 अंगीभूत कॉलेज हैं वही एफिलिएटेड यानी वित्त अनुदानित कॉलेजों की संख्या 55 है।
करीब सवा लाख छात्र छात्राओं का प्रति वर्ष स्नातक में नामांकन और रजिस्ट्रेशन होता है।इसमें करीब 80 हजार से अधिक छात्र छात्राओं के बड़े बोझ सिर्फ एफिलिएटेड कॉलेज के ऊपर होता है।एफिलिएटेड कॉलेज या वित्त अनुदानित कॉलेजों के भरोसे ही राज्य सरकार की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है जहां से बड़ी संख्या में स्नातक की परीक्षा उतीर्ण कर छात्र छात्राएं आगे की पढ़ाई करते हैं और इसी से राज्य सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखने में कामयाब होती है और देश मे अपना पीठ थपथपाती है।राज्य की प्रतिष्ठा बचाने और उनका सर ऊंचा करने वाले इन वित्त अनुदानित कॉलेजों की स्थिति के प्रति भी अब सरकार को गंभीर होना चाहिए ताकि आर्थिक स्थिति से कमजोर होकर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके शिक्षकों के साथ न्याय हो सके।ऐसे शिक्षकों के लिए राज्य सरकार को वर्षो के बकाए अनुदान की राशि को दिलवाने के सम्बंध में कार्रवाई करनी चाहिए और साथ ही शिक्षकों को एक निश्चित वेतनमान देने की व्यवस्था करनी चाहिए।राज्य सरकार चाहे तो अंगीभूत कॉलेजों की तरह या उससे बेहतर स्थिति में चल रहे एफिलिएटेड कॉलेजों की पढ़ाई और आधारभूत संरचना की जांच कराकर मानक पर खरे उतरने वाले कॉलेजों को अधिग्रहण करने की कार्रवाई भी कर सकती है और उसे अंगीभूत कर सकती है क्योंकि कई वर्षों से राज्य सरकार ने एफिलिटेड कॉलेजों को अधिग्रहण नही किया है और ऐसे कॉलेज वर्षों से अंगीभूत नही हुए हैं।राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले महिला कॉलेजो को अंगीभूत करने की कार्रवाई करनी चाहिए।इससे आधी आबादी को बेहतर उच्च शिक्षा की राह आसान होगी और महिला सशक्तिकरण को भी आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।इससे महिलाओं और युवतियों के उच्च शिक्षा के प्रति राज्य सरकार की मंशा का नया संदेश भी महिलाओं और युवतियों के बीच जाएगा।फिर अल्पसंख्यक एवं विकसित आधारभूत संरचना वाले कॉलेजों को भी अंगीभूत करने की दिशा में राज्य सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए।ऐसा करके ही बिहार सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत कर सकती है और उसका यह कदम इतिहास के पन्नो में दर्ज हो सकता है।
वित्त अनुदानित कॉलेजो के ऐसे शिक्षकों एवं शिक्षक संघ ने अब वर्षो से बकाए अनुदान की राशि को शिक्षकों के खाते में अविलम्ब भेजने की कार्रवाई करने और नियत वेतनमान लागू करने की मांग को आंदोलन शुरू कर दिया है।राज्यव्यापी आंदोलन के तहत वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के मुख्य प्रशासनिक भवन के सामने बड़ी संख्या में शिक्षकों ने प्रदर्शन किया और धरना देकर अपनी आवाज बुलंद की है।शिक्षक संघ ने इस मांग पर आंदोलन को और तेज करने का ऐलान किया है।
बिहार राज्य सम्बद्ध शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ के बैनरतले आयोजित इस धरना में शामिल शिक्षक नेता अमित द्विवेदी ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा मिलने वाले अनुदान के बदले सम्बद्ध कॉलेजों को वेतनमान या प्रस्तावित घाटानुदान या ऐसे कॉलेजों को अंगीभूत करने,बकाए अनुदान का बढ़ी हुई महंगाई दर पर एकमुश्त भुगतान करने,अनुदान का भुगतान राज्य सरकार के संकल्प संख्या -1846 दिनांक 22 नवम्बर 2008 के तहत करने,डेढ़ करोड़ रुपये के अनुदान भुगतान की सीमा को खत्म करते हुए एकमुश्त राशि का भुगतान करने,सीनेट एवं सिंडिकेट के चुनाव में सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को शामिल करने की मांग प्रमुख रूप से शामिल है।उन्होंने कहा कि बिहार सरकार,राजभवन के नाम मांग से जुड़ा एक ज्ञापन कुलपति प्रो.डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी को सौंपा गया है। इस धरने में महासंघ के अध्यक्ष डॉ.शम्भू शरण सिंह,डॉ. राजनाथ सिंह,डॉ. शैलेश कुमार सिंह,डॉ. महावीर सिंह,डॉ. दिनेश्वर सिंह,डॉ. अनिल कुमार राय आदि भोजपुर,बक्सर,रोहतास एवं कैमूर जिले के 22 कॉलेजों से आये 330 शिक्षक शामिल हुए।अध्यक्षता महासंघ के अध्यक्ष डॉ. शम्भू शरण सिंह,संचालन डॉ. राजनाथ सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अमित द्विवेदी ने किया।उधर शिक्षक नेता रामेश्वर सिंह,निभा परमार,रागिनी सिन्हा एवं डॉ. संदीप कुमार ने भी इन सभी मांगो के साथ साथ बिहार के महिला कॉलेजों,अल्पसंख्यक कॉलेजों एवं विकसित आधारभूत संरचना वाले कॉलेजों को प्राथमिकता के आधार पर अंगीभूत करने की सरकार से मांग की है।