– प्रत्येक माह रखरखाव व सुरक्षा पर खर्च होते हैं लाखों रुपए
– इस पेड़ की देखरेख के लिए वर्ष में तीन-चार बार देहरादून से आते हैं कृषि वैज्ञानिक
– विश्व के करोड़ों बौद्ध श्रद्धालुओं की इस पेड़ से जुड़ी हुई है आस्था
रंजन सिन्हा
गयाः यदि आप किसी से पूछें कि हमारे देश में सबसे ज्यादा सुरक्षा किसे मिलती है, तो लगभग सभी लोगों का जवाब होगा कि देश के राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स के पास सबसे अधिक सुरक्षा होती है। लेकिन, बिहार के गया जिला में एक ऐसा पेड़ है, जिसे सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सुरक्षा कई नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स से काफी अधिक है। इस पेड़ के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी देखरेख के लिए साल में तीन-चार बार देहरादून से कृषि वैज्ञानिकों की टीम यहां आती है। हम बात कर रहे हैं महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर के परिसर में स्थित पवित्र बोधिवृक्ष की। ऐसी मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वे राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बने थे।
*देखरेख पर खर्च होते हैं लाखों रुपए*
यह पेड़ पूरे विश्व के करोड़ों बौद्ध श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यही कारण है कि इस पेड़ की देखरेख और सुरक्षा में कोई भी कोताही नहीं बरती जाती है। इस पेड़ के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पेड़ की जांच के लिए प्रत्येक साल तीन-चार बार देहरादून से कृषि वैज्ञानिकों की टीम बोधगया आती है। अपनी यात्रा के दौरान कृषि वैज्ञानिकों की टीम न सिर्फ पेड़ के स्वास्थ्य की जांच करती है बल्कि पेड़ की टहनियों और जड़ों तक की जांच कर कीटनाशक का दवाओं का छिड़काव करती है। ताकि पेड़ को किसी प्रकार का कोई नुकसान न हो।
*थ्री लेयर की सुरक्षा व्यवस्था*
पवित्र बोधिवृक्ष की सुरक्षा के लिए सरकार के द्वारा थ्री लेयर सुरक्षा व्यवस्था की गई है। महाबोधि मंदिर के पीछे स्थित इस पेड़ के पास पहुंचने से पहले श्रद्धालुओं को बड़ी सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। पवित्र महाबोधि मंदिर में प्रवेश से पहले न सिर्फ श्रद्धालुओं को अपने मोबाइल फोन तक जमा करना पड़ता है बल्कि अन्य जांच के लिए मेटल डिटेक्टर से होकर भी गुजरना पड़ता है। खास बात यह है कि मंदिर और बोधिवृक्ष की सुरक्षा के लिए बिहार पुलिस के साथ-साथ बीएमपी की भी तैनाती की गई है।
*श्रद्धालु पत्तों का ले जाते हैं प्रसाद*
पवित्र बोधिवृक्ष की पावनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पेड़ से गिरने वाले पत्ते को भी देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु प्रसाद के रुप में यहां चढ़ाए गए पत्तों को लेकर अपने घरों तक जाते हैं।
*11 साल में बदल गई पूरी व्यवस्था*
ऐसा नहीं है कि शुरु से पवित्र बोधिवृक्ष की सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी थी। दरअसल 07 जुलाई, 2013 को महाबोधि मंदिर परिसर में उग्रवादियों द्वारा बम विस्फोट की घृणित घटना को अंजाम दिया गया था। इसके बाद से पवित्र महाबोधि मंदिर की महत्ता को देखते हुए इसकी सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता किया गया ताकि, विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर की आस्था पर किसी प्रकार की आंच न आए।
*बोधिवृक्ष की चौथी शाखा है वर्तमान वृक्ष*
राजकुमार सिद्धार्थ ने जिस उरुवेला वन के पीपल वृक्ष की छांव में अलौकिक दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था, आज वह संपूर्ण विश्व में बोधिवृक्ष के नाम से विख्यात है। इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान में यह चौथा वृक्ष है। लार्ड कनिंघम ने वर्ष 1880 में श्रीलंका के अनुराधापूरम से लाकर लगाया था। ऐसी मान्यता है कि राजकुमार सिद्धार्थ को दिव्य अलौकिक ज्ञान प्राप्ति के साक्षी रहे प्रथम बोधिवृक्ष को कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक की बौद्ध धर्म के प्रति रुझान देखकर उनकी पत्नी तिस्यरक्षिता कुपित हो गई। उन्होंधने ईसा पूर्व 272- 262 में इस वृक्ष को कटवा दिया। क्योंकि सम्राट अशोक का अधिकांश समय इसी की छांव में बीतता था। बोधिवृक्ष की एक शाखा सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बोधिवृक्ष की शाखा अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा के माध्यम से श्रीलंका भेजी थी। उसे श्रीलंका के अनुराधापुरम में लगवाया गया था। दूसरे बोधिवृक्ष को बंगाल के एक शासक शशांक ने 602-620 ईसवी में बौद्ध धर्म के अस्तित्व को समाप्त करने के उद्देश्य कटवा दिया। पुनः बोधिवृक्ष की जड़ से तीसरा वृक्ष निकला। लेकिन लार्ड कनिंघम के नेतृत्वप में खुदाई के दौरान प्राकृतिक आपदा का शिकार हाे गया। तब श्रीलंका के अनुराधा पुरम से बोधिवृक्ष की शाखा मंगवाकर वर्ष 1880 में यहां लगवाया था। वह आज भी है।