‘जिंदगी के सफर में काफी झंझावतों को सहते हुए ईमानदार कोशिश और मेहनत के बूते खुद को स्थापित किया’
मन में कुछ कर गुजरने की ललक हो, दृढ़ संकल्प हो तो आदमी जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता है। बस उसे एक सही दिशा का चुनाव कर बिना रुके, बिना थके अपनी राह पर तब तक आगे बढ़ते रहना चाहिए, जब तक मनचाही मंजिल पर वह पहुंच न जाए। खुद पर विश्वास रख सतत परिश्रम ही सफलता का एक मात्र मूलमंत्र है। इसी राह पर युवावस्था में निकल पड़े बिस्कोमान के अध्यक्ष सुनील सिन्हा। जिंदगी के सफर में काफी झंझावतों को सहते हुए ईमानदार कोशिश और के बूते खुद को खड़ा किया। श्री सिन्हा राजनीति में भी अपनी अलग धमक रखते हैं और अपनी आर्थिक तंगी को यादकर जो भी जरुरतमंद लोग होते हैं उनकी सहायता हर स्तर पर करने में कोई कोताही नहीं बरतते हैं।
जब परिवर्तन को स्वीकार कर लिया
सुनील सिन्हा हर बार यही कहते हैं कि हमारी संस्कृति और सभ्यता ने कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार कर लिया हो अपने को परिष्कृत कर लिया हो, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वे बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नाकारा नहीं जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में पल रहे हों, लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि का अनुभव करते हैं।
युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा बने
संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। कोई भी व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है, उसी से उसकी पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सीखता है। परिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है और दुख-सुख में सभी एक-दूसरे का साथ देते हैं। राजनीतिक गलियारे में पटना से लेकर दिल्ली तक अपनी पहचान कायम करने वाले सुनील सिन्हा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इनकी सबसे खास बात ये है कि हमेशा युवा पीढ़ी को मेहनत और लगन के लिए प्रेरित करते रहते हैं। साथ ही युवा पत्रकारों के लिए हर स्तर पर कदम से कदम मिलाकर चलते हैं।