उन हवाओं को रोकें, जो मानवता हमसे छीन रही

आलेख
  • समता कुमार (सुनील)
  • इतना तो हम सभी मानते हैं कि कमियाँ हर किसी में होती है, एक बात जो हम कभी नही मानते की सामने वाला व्यक्ति खुद भी अपनी कमियों से लड़ रहा होता है और ऐसा न मानने के पीछे हमारे पास कई वजह होती हैं, जैसे कि हमारे लाख बार समझाने पर भी उसका उन्ही गलतियों को बार बार दोहराना।
    इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि उसे उसकी कमियों से बाहर निकालने के लिए उसकी और हमारी कोशिशें पर्याप्त नही थी। बार बार विफल होती हमारी कोशिशों के चलते अक्सर हम भी आहत होकर उसे उसकी कमियां गिनाकर उसे उसी के हाल पर छोड़ देते हैं।
    ऐसे हालात में एक बात जो हमारे लिए समझना बेहद जरूरी है कि वह व्यक्ति हमसे कहीं ज्यादा अपनी कमियों और अपनी कमजोरियों से वाकिफ होता है।
    वह यह गलतियां तब भी दोहरा रहा होता है और यह शर्मिंदगी तब भी उठा रहा होता है, जब हम उसके आस पास नही होते हैं। बस लाख चाहकर भी वह अपनी कमियों से पीछा नही छुड़ा पाता है, वो बेशक हमसे कभी न कह पाए लेकिन इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि शर्मिंदगी का अहसास उसे भी होता है। एक नई जिंदगी और एक नई सुबह का इंतज़ार हमसे कहीँ ज्यादा उसे होता है।
    ऐसे मुश्किल हालातों में वह व्यक्ति एक ही वक़्त में कई अहसास से गुजर रहा होता है, खुद के कमजोर होने के एहसास से, अपनी गलतियों को दोहराने और उससे होने वाली शर्मिंदगी के एहसास से, हमारे गुस्से के डर के एहसास से, हमारे तानों के डर के एहसास से और हम उसका साथ छोड़ देंगे शायद इस एहसास से भी..!!!
    यहाँ कोई ऐसा नही है जो कमजोर होने के लिए जीता है, बस अपने जीवन में सही लड़ाई न चुन पाने के कारण अक्सर लोग कमजोर हो जाते हैं, गुजरे वक़्त में किसी बात को अपने दिल से लगाकर, उस पर हद्द से ज्यादा प्रतिक्रिया देकर अक्सर लोग कमजोर हो जाते हैं। आखिर कौन जानता है कि गुजरे वक़्त में हुई कौन सी बात और कौन से वाकये ने उसे इतना कमजोर बना दिया ? इन सवालों का जवाब ढूंढना बहुत ही मुश्किल है।
    लेकिन एक बात जो मुमकिन है कि उसका हौसला बढाकर, उससे प्यार के दो शब्द कहकर, उसके नुकसान में उसके भागीदार बनकर, उसके साथ कदम से कदम मिलाकर हम उसका साथ तो दे ही सकते हैं।
    ये तेज़ हवाएं जो हमसे हमारी मानवता छीनकर उसे उड़ाकर हमसे कहीं दूर ले जा रही है, इन हवाओं का विरोध केवल कागजों पर दर्ज कराने से नही, किसी को अल्फाजों के चक्रव्यूह में फंसाने से नही बल्कि विपरीत परिस्थितियों में हमारे अपनो का साथ देकर ही इन हवाओं का विरोध होगा।

शायद यही मनुष्य होने का सही अर्थ है और शायद यही हमारा कर्मयुद्ध और धर्मयुद्ध भी है..!!
(साभार- जीवन यात्रा के चिन्तन)

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