गुजरात सरकार ने 10 अगस्त 2022 को बलात्कार और बच्चे की हत्या के मामले में उम्र कैद की सज़ा काट रहे दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी किया था. गुजरात सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा कि “यह राज्य सरकार का विश्वास है कि वर्तमान याचिका इस अदालत के जनहित याचिका (पीआईएल) के अधिकार के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है. इसलिए सरकार की अपील है कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज किया जाए.” सरकार ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्ताव पर विचार किया है जैसा कि इस न्यायालय द्वारा निर्देश दिया गया है. हलांकि इस घटना के बाद गुजरात सरकार ने एक कमेटी का गठित कर मामले के सभी 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करने के पक्ष में सर्वसम्मत फ़ैसला लिया और उन्हें रिहा करने की सिफ़ारिश की. आख़िरकार, 15 अगस्त को इस मामले में उम्रकै़द की सजा भुगत रहे 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को जेल से 15 अगस्त को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया.
कैसे घटित हुई घटना
“दाहोद ज़िले का रणधीकपुर गांव गोधरा से क़रीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है. 27 फ़रवरी 2002 को बिलकिस अपने इसी गांव में थीं, जब गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस को कुछ लोगों ने आग के हवाले कर दिया था. दंगे भड़कने के बाद बिलकिस अपने गांव में थीं लेकिन दंगे भड़कने की ख़बर गांव तक पहुंची, उनके परिवार ने जान बचाने के लिए गांव से भागने का फ़ैसला किया. वे गांव से ज़्यादा दूर नहीं भाग सके थे…क़रीब 10 किलोमीटर दूर ही चपरवाड़ गांव के पानीवेला इलाक़े में पहाड़ियों के पास ही उन्हें रोक लिया गया. यहीं पर बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनके परिवार वालों की हत्या भी. इस घटना के इतने साल बीत जाने के बावजूद भी ज़ख़्म हरे हैं और जब से दोषियों को रिहाई मिली है, तब से गांव के लोगों में ख़ौफ़ का माहौल है.
क्या है मामला?
- साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रणधिकपुर गांव में एक भीड़ ने पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था.
- उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
- 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी सज़ा को बरकरार रखा था.
- 15 साल से अधिक की जेल की सज़ा काटने के बाद दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सज़ा माफ़ी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
- सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सज़ा माफ़ी के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था.
- बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के बाद क़रीब 500 मुसलमान रणधीकपुर छोड़कर जा चुके हैं.
- बिलकिस बानो मामले में रिहा हुए 11 दोषियों में से ज़्यादातर सिंहवड़ गांव में रहते हैं. यह गांव बिलकिस बानो के गांव रणधीकपुर के काफी नज़दीक है.
- बिलकिस बानो के गांव से मुस्लिम परिवारों का पलायन
- 2011 की जनगणना के मुताबिक रणधीकपुर गांव की जनसंख्या 3 हजार 177 थी, जो अब भले ही बढ़ गई हो लेकिन गांव बहुत छोटा दिखाई देता है.
- रणधीकपुर और सिंगवाड़ में मुख्य रूप से आदिवासी, कोली और मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. ये लोग खेती, मजदूरी के साथ साथ छोटी दुकानें और व्यवसायों में लगे हुए हैं.
बिलकिस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई
बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं की सुनवाई में मंगलवार को अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि सभी दोषियों को फिर से जेल भेजा जाए.
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने सोमवार को कैदियों की रिहाई के समर्थन में हलफनामा दिया था. गुजरात सरकार ने हलफनामे में कहा कि कैदियों की रिहाई में पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है. याचिकाकर्ता सुभाषिनी अली और अन्य की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच से कहा, ”मेरा मानना है कि उन्हें (11 दोषियों को) जेल में होना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के हलफनामे के बाद याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने के लिए समय दिया है और इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 29 नवंबर दी है. हलफ़नामे में गुजरात सरकार ने 11 सज़ायाफ़्ता मुजरिमों को रिहा करने के अपने फ़ैसले का बचाव किया है. सरकार ने कहा कि सभी दोषियों ने 14 साल या इससे अधिक समय जेल में बिताया और उनके अच्छे व्यवहार को देखते हुए रिहाई दी गई है. साथ ही ये फ़ैसला केंद्र सरकार की सहमती के बाद लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में सरकार ने अपने कहा कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के फैसले से याचिका करने वाले थर्ड पार्टी अज्ञात लोगों का कोई लेना देना नहीं है और न ही उनके पास इस आदेश के खिलाफ अपील करने का कोई आधार है.,GETTY IMAGES
दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका के जवाब में गुजरात सरकार ने एक हलफनामा दिया जिसमें कहा गया है कि ‘पुलिस अधीक्षक, सीबीआई स्पेशल ब्रांच मुंबई और स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे’ ने बीते साल मार्च में कैदियों की रिहाई का विरोध किया था. गोधरा जेल के सुपरिंटेंडेट को लिखे पत्र में सीबीआई ने कहा था कि जो अपराध इन लोगों ने किया है वो ”जघन्य और गंभीर” है.
गुजरात सरकार ने कहा, ”यह बात ध्यान देने योग्य है कि याचिका कर्ता (सुभाषिनी अली), जो वास्तव में एक राजनीतिक पदाधिकारी हैं, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि स्पेशल जज ग्रेटर मुंबई से सज़ा सुनाए गए 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले के खिलाफ अपील करने का उनके पास क्या आधार है.”
सरकार ने कहा, ”याचिकाकर्ता ने यह भी नहीं बताया कि राज्य सरकार के फै़सले से वो कैसे असंतुष्ट हैं. साथ ही इस याचिका में अनिवार्य दलीलें और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का ज़िक्र ग़ायब है.”
गुजरात सरकार ने 11 दोषियों को रिहा करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुभाषिनी अली और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हलफनामा दिया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ”लाल किले से महिला सम्मान की बात लेकिन असलियत में ‘बलात्कारियों’ का साथ. प्रधानमंत्री के वादे और इरादे में अंतर साफ है, पीएम ने महिलाओं के साथ सिर्फ छल किया है.”