- मनोज कुमार श्रीवास्तव
जहाँ फर्जी शिक्षक बहाल हो, प्रशासनिक अफसर भ्र्ष्टाचार में लिप्त हो,दलालों की भरमार हो,गरीब भुखमरी के कगार पर हो,भूमि विवाद सुलझाने वाला हीं उलझा रहा हो,दाखिल-खारिज के नाम पर अवैध वसूली हो,रोज पदाधिकारी-कर्मचारी के यहां छापेमारी हो रही है, उनके घर से लाखों-करोड़ों नकदी मिल रही हो,एमएलसी/एमएलए, नेताओं के यहां छापे में बेशुमार धन-दौलत ,बड़े-बड़े आलीशान मकान,फ्लैट मिल रहे हैं, 31 वीं न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति में पास-फेल का खेल चल रहा हो, क्या यही बिहार की पहचान बन चुकी है।
प्रख्यात गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने कहा था की देश के लगभग सभी जगहों पर सत्ता से पैसा और फिर पैसा से सत्ता का खेल चल रहा है।यह लोकतंत्र के लिए काफी घातक है।भ्रष्टाचार के दलदल में फंसकर देश कराह रहा है।अन्नदाता भूखे मर रहे हैं लेकिन सरकार उद्दोगपतिओं की चिंता करने में लगी हुई है।देश किसानों का है लेकिन किसान बेगाने हो गए हैं।बिहार में किसानों की माली हालत खराब है।क्राइम,भ्रष्टाचार व कम्युनिज्म से किसी भी सूरत में समझौता नहीं करने का ऐलान करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में भ्रष्टाचार पर लगाम लगती नहीं दिख रही है। एक मामले की चर्चा थमती नहीं कि दूसरा भ्रष्टाचारी सामने आ जाता है।
इंडियन करप्शन सर्वे 2019 की रिपोर्ट में बिहार का स्थान दूसरा था। यहां 75 % लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है।इनमें भी 50 % लोगों ने तो यहां तक कहा की उन्हें काम करवाने के एवज में अधिकारियों को कई बार रिश्वत देनी पड़ी । कमोबेश बिहार के हर दफ्तर की स्थिति यही है।अधिकांश कर्मचारी डंके की चोट पर रुपये लेते हैं। हो सकता है रुपया दिये बिना आपका कुछ काम हो भी जाये,लेकिन कब होगा यह कहना मुश्किल है।
मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार की पोल खुलती रही है।एक बार तो मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव को बुलाकर कहना पड़ा कि देखिए क्या हो रहा है।प्रखंड-अंचल स्तर के अधिकारियों की लापरवाही के मामले में लगातार सामने आ रहे हैं।लोग शिकायत कर रहे हैं।
बिहार सरकार के भूमि व राजस्व विभाग के मंत्री रामसूरत राय तो पहले हीं कह चुके हैं कि उन्हें यह कहने में गुरेज नहीं है कि राज्य में भ्रष्टाचार व्याप्त है और उसकी नींव बहुत गहरी है।जिन लोगों की वास्तव में समस्या होती है उनका काम नहीं हो पाता है।बिहार में प्राशसनिक अधिकारी बेलगाम हो गये हैं।सीनातान सरकारी काम में लापरवाही कर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं।सरकार और मंत्रियों को इससे क्या है उन्हें तो बंदरबांट में अपने हिस्से से मतलब है।
बिहार सरकारी अफसरों, कर्मचारियों के घरों पर छापों में बेहिसाब धन-दौलत निकल रहा है।लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार सरेआम हो चूका है, डर नाम का चीज अब नहीं रह गया है।अपहरण, बलात्कर तो आम बात हो गई है।आखिर बिहार को क्या हो गया है कि प्रत्येक दिन कोई न कोई भ्रष्टाचार की गंगोत्री में फंस रहे हैं और बिहार को खोखला करने पर तुले हुए हैं।बिहार की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होते जा रहे हैं।राज्य सरकार इस समस्या पर नाकाम साबित हो रहा है।
राज्य सरकार महंगाई और गरीबी के नाम पर लोगों का वोट बटोरती है लेकिन सरकार बनते ही लोगों से किये हुए वादें भूल जाती है।पूर्व मंत्री और आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने नीतीश सरकार पर जुबानी हमला बोलते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री ने राज्य में 17 साल के शासनकाल के दौरान बिहार को बर्बाद कर दिये हैं।बिहार को नीतीश मॉडल के भ्रष्टाचार और कुशासन के दलदल से उबरने के समय आ गया है।
पूर्व आईएएस एस एम राजू को सरकार ने महादलित मिशन के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर रहते हुए उन पर गबन और घोटाले के आरोप लगे और जेल गए।एमएलसी राधाचरण सेठ के यहां बेसुमार रुपये, धन दौलत मिले, मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति राजेन्द्र प्रसाद 20 करोड़ के घोटाले में जेल गए।ऐसे अनगिनत पदाधिकारी हैं जो भ्रष्टाचार के आगोश में समाकर बिहार के गरीब जनता को लूटकर कुबेर की गद्दी पर बैठे हुए हैं।
जबतक एमपी, एमएलए,एमएलसी,मंत्री,नेता अपनी निज स्वार्थता से दूरी नहीं बनाएंगे तबतक बिहार का कायाकल्प नहीं होने वाला है।बताया जाता है कि वर्तमान में जो माहौल बना हुआ है उसमें मजबूरन रुपया देना पड़ रहा है।प्रखंड से लेकर राज्य तक कौन है जो रुपया नहीं ले रहे हैं।यदि रुपया नहीं देंगे तो चैन से नौकरी कर पाएंगे।
नीतीश मॉडल के तहत लगभग 4 करोड़ युवा अपने निजी भविष्य की तलाश में दूसरे राज्य में पलायन कर रहे हैं।शिक्षा प्रणाली बिहार की ध्वस्त हो चुकी है।सत्ता के संरक्षण में नीतीश कुमार ने बिहार में भ्रष्टाचार का ऐसा जाल बिछाया है कि उसे तोड़ा नहीं जा सकता।बिहार में जो जितना ऊंचा पड़ पर है, उतना हैं अन्याय में शामिल है।वित्तरहित कॉलेजों की समाप्ति सरकार के नाम करने के बाद उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है।यदि वित्तरहित नहीं रहेगी तो बिहार की शिक्षा बर्बाद हो जाएगी।जो कुछ भी बचा है वो वित्तरहित शिक्षकों एवं कालेजो के बलबूते बचा हइस बात को बिहार सरकार बखूबी जानती है।