- ऋतुराज सिन्हा
जब बाबा साहेब ने चौथी पास की, तब उनके शुभचिंतक इस “विशेष अवसर” पर उत्सव मनाना चाहते थे, पहली बार उनके समुदाय के किसी लड़के ने इतनी ऊंची शिक्षा हासिल की थी। पर बाबासाहेब यहां रुकने वाले नही थे, उन्हे तो आसमान छूना था। अर्थशास्त्र में डबल M.A., 11 भाषाओं के दिग्गज, सामाजिक न्याय व्यवस्था के अग्रणी मार्गदर्शक, माँ भारती के करोड़ों उपेक्षित और शोषित संतानों के प्रकाशस्तंभ, और दुनिया के सबसे व्यापक संविधान के जनक।
बाबासाहेब पढ़ते रहे, बढ़ते रहे, और आखिरी सांस तक लड़ते रहे। उन्होंने चरितार्थ कर दिया कि कलम वास्तव में तलवार से कहीं ज्यादा बलशाली है।
बहुत ही अनर्गल लगता है जब जातिवादी ताकतें, निहित स्वार्थ के लिए बाबासाहेब के अपरिमित व्यक्तित्व को एक दायरे में बांधने की कोशिश करती हैं।
“यदि उन्हें बांधना चाहे तुम्हारा मन, तो पहले बांधो अनंत गगन”।
क्योंकि बाबासाहेब के कृतित्व असंख्य हैं। उनके नाम पर की जाने वाली संकीर्ण राजनीति के दुष्प्रभाव का सबसे बड़ा प्रमाण हमारा बिहार राज्य है। दशकों की जातिगत और विभाजनकारी राजनीति ने प्रगति के हर मापदंड पर हमें पिछड़ने पर मजबूर कर दिया है। एक तरफ बाबासाहेब की दूरदर्शिता और अथक उद्यमिता को प्रेरणास्रोत बनाकर प्रधानमंत्री मोदीजी देश को अमृतकाल में ले जा रहे हैं। दूसरी तरफ तथाकथित महागठबंधन के नेतागण, जो खुद को बाबासाहेब की विरासत का एकाधिकारी बताते हैं, उन्होंने बिहार को आदमयुग में भेजने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
गरीबी, बेरोजगारी, और अशिक्षा के दंश से त्रस्त बिहार की जनता दो पीढ़ियों से इस अवसरवादी राजनीति के दुष्चक्र में फंसी हुई है। बाबासाहेब का यह मानना था कि आर्थिक समरसता, औद्योगिकरण, कृषि का आधुनिकीकरण, सर्व शिक्षा और कौशल विकास के बिना सामाजिक उत्थान की बात करना अव्वल दर्ज़े की बेइमानी है।
वक़्त की माँग है की आज बाबा साहेब के दिखाए हुए पथ पर बढ़ते हुए बिहार से विभाजनकारी नेतृत्व को उखाड़ फ़ेक हम आर्थिक और सामाजिक उत्थान की नीवँ रखें।

(लेखक- राष्ट्रीय मंत्री भाजपा)

