पटना: पूर्व विधान पार्षद प्रो. रणबीर नंदन ने कहा है कि उच्च शिक्षा में सकारात्मक बदलाव के लिए केंद्र और राज्य सरकार को आगे बढ़ने की मांग की है। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर क्वालिटी एजुकेशन हर विद्यार्थी तक उपलब्ध कराना होगा। इसके लिए नियमों में बदलाव से लेकर सोच में बदलाव तक की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब विश्वविद्यालयों में हर विभाग शिक्षक के कारण जाना जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति का आसान मॉडल नहीं मौजूद है। पहले स्नातकोत्तर के अच्छे विद्यार्थियों को सीधे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक के तौर पर जोड़ दिया जाता था। लेकिन बाद में पीएचडी और नेट की बाध्यता ने शिक्षकों की बहाली को लंबी प्रक्रिया बना दिया है। पीजी पास करते ही शिक्षक के पद पर नियुक्ति शिक्षकों को छात्रों को अच्छे से जोड़ती थी। लेकिन रिसर्च में लगे छात्र शिक्षण व्यवस्था से दूर सिर्फ अपने रिसर्च पूरा करने में लग जाते हैं। उनका पूरा ध्यान अपने टॉपिक पर रहता है और समेकित विषय से वे थोड़े दूर हो जाते हैं। इसलिए वे सीधे छात्रों से कनेक्ट नहीं हो पाते।
प्रो. नंदन ने कहा कि रिसर्च वर्क बेहद जरूरी है। लेकिन जो अभी रिसर्च हो रहा है, वो समाज के कितना काम आ रहा है, उसका भी ऑडिट होना चाहिए। रिसर्च तो तभी ठीक है, जब वो समाज के विकास में काम आए। पिछले 10 वर्ष के रिसर्च वर्क की समीक्षा होनी चाहिए कि जो भी रिसर्च हुए हैं, वो कितने कारगर हैं और कितना काम आए हैं। रिसर्च वर्क में जाने से पहले पीजी पास टैलेंटेड युवाओं को कॉलेजों में शिक्षक बनाने से विश्वविद्यालयों की स्थिति में बड़ा बदलाव आएगा। इसलिए इस व्यवस्था को पुन: लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि 45 केंद्रीय यूनिवर्सिटीज में 18,956 स्वीकृत पद हैं। इनमें से प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 6180 पद खाली हैं। वहीं यदि देश के IIT यानी कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की बात की जाए तो यहां कुल 11,170 स्वीकृत पद हैं। इनमेंy से 4,502 पद खाली हैं। इसी तरह भारत के प्रबंधन संबंधी शीर्ष शिक्षण संस्थानों यानी IIM में शिक्षकों के 1,566 पदों में से 493 पद खाली हैं। सभी पदों को शीघ्र भरना चाहिए, ताकि पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मक असर दिखे।