बिहार में एकबार फिर जंगलराज की वापसी हो चुकी है ?

आलेख

– मनोज कुमार श्रीवास्तव

कानून व्यवस्था बिगड़ चुकी है,दिनोंदिन बिहार में अपराध की घटनाएं बेतहाशा बढ़ रही है।थमने का नाम नहीं ले रही है। विगत कुछ दिनों में लूट,चोरी, डकैती, रंगदारी, दुष्कर्म, हत्या बलात्कार और अपहरण की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है।कानून से बेखौफ अपराधी एक के बाद एक बड़ी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।बिहार की बिगड़ी कानून व्यवस्था को बेलगाम अपराधियों के एनकाउंटर से ही काबू किया जा सकता है।

अपराध के बढ़ते ग्राफ से बिहार में फिर आमलोग बेहाल हैं लूट,डकैती, हत्या के साथ हो रही हिनियस क्राइम ने आम इंसान की टेंशन बढ़ा दी है।अपराध

का जो ट्रेंड है वह पहले की तरह है।अगर समय रहते ही इस पर काबू नहीं पाया गया तो अपराधियों से निपटना बहुत बड़ी चुनौती हो जायेगी।बैंकों में दिनदहाड़े लूट और लूट के लिए हत्या आमबात हो गयी है।विपक्ष तो मौजूदा परिस्थिति को 2005 से पहले वाले हालात से जोड़ रहा है।

पुलिस की आये दिन पिटाई हो रही है।छापेमारी के दौरान पुलिस को आमलोगों की भींड़ पिट रही है।डीजीपी क्राइम कंट्रोल को लेकर मीटिंग कर रहे हैं, नए-नए प्रयोग किये जा रहे हैं इसके बावजूद अपराध का ग्राफ सरकार पर सवाल कर रहा है।पीएम मोदी से मुलाकात के बाद सम्राट चौधरी को बिहार के लिए योगी की तरह ही देखा जा रहा है।बिहार में भाजपा नेता नीतीश कुमार को क्राइम कंट्रोल के लिए तरह-तरह की नसीहत देने लगे हैं।

पटना के सीनियर जर्नलिस्ट प्रवीण बागी का कहना है कि 2005 से पहले बिहार में हो रहे अपराध को जंगलराज की संज्ञा दी जाती थी।कानून व्यवस्था बेपटरी हो गई थी,अपहरण और हत्या से राज्य की जनता में असुरक्षा की भावना थी।बिहार का क्राइम पूरे देश में चर्चा में रहा।बिहार की जनता सीएम नीतीश कुमार पर हर चुनाव में भरोसा जताया क्योंकि उन्होंने 2005 विधानसभा चुनाव में कानून व्यवस्था को लेकर किये गए वादे पूरे किया।आज भी क्राइम कंट्रोल के लिए नीतीश के शासनकाल वाले पुराने दिन याद किये जाते हैं।

हालांकि नीतीश कुमार सत्ता में है, लेकिन हालात 2005 वाला नहीं है।अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है जिसे विपक्ष जंगलराज का नाम दे रहे हैं।जनता कानून व्यवस्था से परेशान है।यही कारण है कि आम से लेकर खास तक बिहार में योगी मॉडल चाहता है।मौजूदा समय में कोई भी पार्टी कानून व्यवस्था के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ती है तो बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन हासिल होगा।।भाजपा सही समय पर इस मॉडल को लाई है, वह कानून व्यवस्था के एजेंडे से बिहार में सत्ता आ सकती है।

“सुशासन बाबू”के नाम से मशहूर नीतीश कुमार के राज में पिछले कुछ दिनों से आपराधिक घटनाएं घमण्ड का नाम नहीं ले रही है।इन घटनाओं से ऐसा लग रहा है कि राज्य का सुशासन से दूर का रिश्ता है।जबरन,वसूली,लूटपाट,चोरी,बलात्कार,डकैती,छीनाझपटी की खबरें तो रोज अखबारों की सुर्खियां बन रही है।संगठित आपराधिक गिरोह लगातार राज्य के सर्राफा कारोबारियों, बैंकों ऑफ एटीएम आदि को निशाना बना रहे हैं।

शराबबंदी होने के बाद भी शराब माफ़िया के संरक्षण में राज्य में नकली शराब का धंधा फल-फूल रहा है।इसके वजह से बेतिया,मुजफ्फरपुर, गोपालगंज और मुख्यमंत्री के गृहजिले नालंदा तक से जहरीली शराब से मरने की घटनाएं लगातार सामने आयी है।अपराध की इन तमाम घटनाओं को लेकर बिहार पुलिस के आला अधिकारी चुप्पी साधे हुए है।हालांकि इन सभी घटनाओं की जिम्मेवार केवल पुलिस पर डालना उचित नहीं है।बल्कि पुलिस को नियंत्रित करने वाली राजनीतिक सत्ता की जबाबदेही कहीं ज्यादा है। राज्य में गिरती कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।

बिहार में अपराध चरम पर है।दिन दहाड़े हत्या और लूट हो रही है, कभी दरोगा की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है, कभी शराब तस्कर पुलिस वालों को दौड़ाते हैं अब एक जुझारू पत्रकार की गोली मार कर हत्या कर दी गई।लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री को अपराध नजर नहीं आता है। बिहार में जनता के हक में आवाज उठाने वाले पर लाठियों की बरसात कराई जा रही है। उन्हें तो बस अपनी कुर्सी की पर नजर है।नीतीश जी को दिल्ली के दिवास्वप्न से बाहर निकलकर बिहार की कानून व्यवस्था पर चिंतन करना चाहिए।

नीतीश कुमार पिछले करीब 16 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं, वे जानते हैं कि अब ज्यादा दिनों तक इस पद पर नहीं रह सकते हैं।जाहिर है कि ऐसी स्थिति में इंसान शिथिल हो जाता है।इनमे अब वो चमक और हनक नहीं रही जो इनके पहले कार्यकाल में थी।पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बीबीसी से बातचीत के क्रम में कहा कि,”सुशासन का ठप्पा ही गलत लगा था अब उनका सही चेहरा सामने आ रहा है।”उन्होंने कहा कि शराबबंदी लागू कर उन्होंने सरकारी राजस्व को निजी फायदे में बदल दिया।अब सरकारी राजस्व से ज्यादा रिश्वत के रूप में बड़ी राशि सरकारी अधिकारियों को मिलती है।ऐसे में ये सोंचना मुश्किल है कि इसमें राजनीतिक लोगों का हाथ नहीं हो सकता है।

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