–आचार्य मोहित पाण्डेय, लखनऊ
नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस चराचर जगत की उत्पत्ति से पूर्व जब चहुँ ओर घना अंधेरा था एवं किसी भी प्राणी मात्र का नामोनिशान नहीं था तो मां दुर्गा ने इस अंड रूपी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण से उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण ही ये आदिशक्ति मां जगदम्बा भी कहलाती हैं।
कैसा होता है कूष्मांडा माता का स्वरूप
इनकी आठ भुजाएं हैं और ये शेर पर सवार हैं। मां कूष्मांडा के सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, अमृत से भरा हुआ कलश, बाण और कमल का फूल है तथा आठवें हाथ में जप करने की माला है। मां कूष्मांडा देवी सभी प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं।
मां कूष्मांडा देवी की पूजा के लिए लाभदाई मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं,रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां,कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
इसका अर्थ यह है कि अमृत से भरे हुए कलश को धारण करने वाली एवं कमल के फूल से युक्त तेजोमयी मां कूष्मांडा देवी हमें सभी कामों में लाभदाई सिद्ध हों।
मां कुष्मांडा देवी को इलायची की सुगंध से युक्त मालपुवा है अत्यंत प्रिय
मां कुष्मांडा को इलायची की सुगंध से युक्त मालपुए प्रिय हैं, इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है। मां इससे बहुत प्रसन्न होती हैं, वे भक्तों के सभी सद्कामनाओं को पूर्ण करती हैं।
मां कुष्मांडा का प्रिय पुष्प
चमेली का फूल या पीले रंग का कोई भी फूल अर्पित करने से देवी मां बहुत प्रसन्न होती हैं एवं सुख, समृद्धि के साथ आरोग्य का वरदान प्रदान करती हैं।
बुध ग्रह लिए करें मां कुष्मांडा की पूजा
मां कुष्मांडा की पूजा से बुध ग्रह की अशुभता दूर होती है। बुध बुद्धि, वाणी, व्यापार, मुख से संबंधित ग्रह हैं, अगर इनमें किसी प्रकार का दोष उत्पन्न हो जाए या राहु का ग्रहण लगे तो बुद्धि भ्रमित होने लग जाती है, मां की पूजा से बुध ग्रह शुभ फल देने लग जाते हैं। मां का भक्त बुद्धिमान बनता है। जिससे वह इस भौतिक संसार में अपनी बुद्धि एवं युक्ति से यश, गौरव एवं धन के अर्जन के साथ- साथ समाज मे सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
मां कूष्मांडा की उपासना से दूर होते हैं समस्त कष्ट एवं रोग
भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। मां कूष्माण्डा देवी की भक्ति से आयु, यश, बल एवं आरोग्य में अतुलित वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा देवी बहुत कम सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं।
- आचार्य मोहित पाण्डेय
ज्योतिष विज्ञान एवं भविष्य दर्शन, लखनऊ
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