–आचार्य मोहित पाण्डेय, लखनऊ
पौराणिक कथा के अनुसार भील आदिवासी कबीले के मुखिया आज के घर बेटी पैदा हुई थी। उसका एक नाम श्रमणा और दूसरा नाम शबरी रखा गया। शबरी की मां इन्दुमति उसे खूब प्यार करती थी। बचपन से ही शबरी पशु-पक्षियों की भाषा समझकर उनसे बातें करती और जब शबरी की मां उसे देखती, तो कुछ समझ नहीं पाती थी। भीलों के समाज में किसी भी शुभ अवसर पर पशुओं की बलि दी जाती थी, लेकिन शबरी को पशु-पक्षियों से बहुत स्नेह हुआ करता था। इसलिए पशुओं को बलि से बचाने के लिए शबरी ने विवाह नहीं किया और ऋषि मतंग की शिष्या बन गई और ऋषि मतंग से धर्म और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया।
प्रभु श्रीराम के आने की भविष्यवाणी
ऋषि मतंग के आश्रम में आने के बाद शबरी सदा ही प्रभु श्रीराम की भक्ति में ही लीन रहती थीं। भगवान के प्रति शबरी का ऐसा भक्तिभाव देखकर ऋषि मतंग ने अपने अंत समय में शबरी को बताया कि श्रीराम के दर्शन से ही शबरी को मोक्ष मिलेगा। यह सुन कर शबरी प्रतिदिन अपनी कुटिया के रास्ते में आने वाले पत्थरों और कांटों को हटाने लगीं, ताकि श्रीराम के पैरों में चुभे नहीं। शबरी रोज ताजे फल और बेर तोड़कर श्रीराम के लिए रखती थीं। इसी तरह इंतजार में कई साल बीत गए। शबरी का शरीर एकदम वृद्ध हो गया।
शबरी और प्रभु श्रीराम का मिलन
माता सीता की खोज में जब भगवान श्रीराम शबरी की कुटिया पहुंचे तो वह भाव विभोर हो गईं और उनके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। कहते हैं कि शबरी ने श्रीराम को स्वयं चखकर सिर्फ मीठे बेर खिलाये, जिसे भगवान राम ने भी भक्ति के वश होकर प्रेम से खाए। शबरी की भक्ति देखकर प्रभु श्रीराम ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया।
- आचार्य मोहित पाण्डेय, लखनऊ
ज्योतिष विज्ञान एवं भविष्य दर्शन।
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