कैसे खून से लथपथ होने से बचें हमारी सड़कें

आलेख

आर.के. सिन्हा

एक बार फिर से देश में सड़क हादसों पर आई एक सरकारी रिपोर्ट को पढ़कर कोई भी इंसान डर जाता है। समझ नहीं आता कि आखिर कैसे हम अपने यहां होने वाले सड़क हादसों के कारण होने वाली मौतों पर काबू कर पाने में सफल होंगे। फिलहाल तो स्थिति सच में बेहद चिंताजनक है। हाल ही में आई रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल यानी 2022 में 4.61 लाख सड़क हादसे हुए। इन दुर्घटनाओं में 1.68 लाख लोगों ने जान गंवाई। ये वास्तव में एक बहुत ही बड़ा  आंकड़ा है। इन आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि तकरीबन हर एक घंटे में 53 सड़क हादसे हुए। हम जिस रिपोर्ट की बात कर रहे हैं उसे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने ही जारी किया है। हादसों का वे अभागे लोग खासतौर पर शिकार हुए जो सीट बेल्ट और हेलमेट का इस्तेमाल नहीं करते।

मेरा मानना है कि हमारे यहां निजी कारों और दूसरे वाहनों को चलाने वाले ड्राइवरों को जितना काम करना पड़ता है उसके चलते भी बहुत सारे हादसे होते हैं। एक औसत ड्राइवर दिन में 14-15 घंटे ड्यूटी करता है। उसे सोने का सही से मौका नहीं मिलता। उसकी कायदे से नींद पूरी ही नहीं हो पाती। चूंकि उसे अपने बीवी- बच्चों का पेट भरना होता है इसीलिए उसे दिन-रात गाड़ी चलानी पड़ती है। अमृत मान ने 1986 से लेकर 1991 तक अपनी सेकेंड हैंड एंबेसेडर कार को टैक्सी के रूप में चलाया। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे कई टैक्सियां खरीद कर अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोल ली। अमृत मान कहते हैं कि वे मन से अब भी ड्राइवर हैं। वे कहते हैं- “ड्राइवरी के पेशे में सिर्फ खटना होता है। ड्राइवर के सुख-दुख से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके जीवन में जिल्लत और अपमान ही है। उसने कब खाना खाया या नहीं खाया, वो कहां सोया या नहीं सो पाया, इससे आमतौर पर किसी कोई को लेना-देना नहीं होता।”

आप कभी किसी सरकारी या अन्य बिल्डिंग की पार्किंग को देख लें। वहां पर सैकड़ों कारें खड़ी मिलेंगी। किसी एक कार के बोनट पर चार-पांच ड्राइवर ताश खेल रहे होते हैं। उन्हें उनके कुछ साथी देख भी रहे होते हैं। अचानक से बॉस का फोन आया। एक ड्राइवर ने अपने ताश के पत्ते साथी को दिए और निकल पड़ा बॉस को लेने। यही ड्राइवर की जिंदगी है। कब कहां जाना है, कुछ पता नहीं। उसे सवाल पूछने तक का हक नहीं है। उसकी ड्यूटी का कोई समय नहीं। आपको देश के बहुत सारे शहरों में सड़क किनारे टैक्सी स्टैंड मिलेंगे। वहां पर कुछ ड्राइवर चारपाई पर बैठे होते हैं। पीछे एक छोटा सा टेंट लगा होता है। इन टेंटों के आसपास ही ड्राइवरों की जिंदगी गुजर जाती है। टेंट में चाय बनाने वाला एक स्टोव भी रखा होता है। कई ड्राइवरों से बात हुई। सबका कहना था कि  जब किसी को लेकर शहर से बाहर जाते हैं, तो रात को गाड़ी में ही सो जाते हैं। इतना पैसा तो मिलता नहीं कि होटल या धर्मशाला में रूक सके। बेशक, ड्राइवरी के पेशे से वे ही जुड़ते हैं जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता। कोई भी ड्राइवर नहीं बनना चाहता। कोई ड्राइवर अपने बच्चों को ड्राइवर बनाना भी नहीं   चाहता। पर मजबूरी क्या नहीं करवाती। औसत ड्राइवर तो जीवन भर संघर्ष ही करता रहता है। चूंकि ड्राइवरों को रोज 14-15 घंटे तक काम करना होता है तो इनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। सोने का इन्हें समय नहीं मिलता। इसका नतीजा यह होता है कि इतने ज्यादा हादसे होते हैं। ड्राइवर कभी यह   नहीं कह सकता कि रात के वक्त चलना खतरे से खाली नहीं है। ड्राइवरों को तो हुक्म को मानना ही है। उसकी सिर्फ कमी निकाली जाएगी। कौन सुनता है उसकी कहानी। 

आप जानते हैं कि टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमेन सायरस मिस्त्री की एक सड़क हादसे में ही अकाल मौत हुई थी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, मशहूर कलाकार जसपाल भट्टी, कांग्रेस के नेता राजेश पायलट और केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे सड़क हादसों का ही शिकार हुए। अभी तो इन्हें देश को बहुत कुछ देना था। सायरस मिस्त्री की मौत से भारत का आम जन और कोरपोरेट संसार हिल गया था। मिस्त्री चमक-धमक से दूर रहने वाले, सज्जन, प्रतिभाशाली और गर्मजोशी से भरे मनुष्य थे। मिस्त्री अपनी पीढ़ी की श्रेष्ठ व्यावसायिक प्रतिभाओं में से एक और बेहद सज्जन व्यक्ति थे। उनका वैश्विक दिग्गज कंपनी शापूरजी पालोंजी को खड़ा करने में अहम योगदान था। सायरस मिस्त्री में नेतृत्व के पर्याप्त गुण थे। 

 बहरहाल, रिपोर्ट के अनुसार, देश में हुए कुल हादसों में 32.9 प्रतिशत हादसे एक्सप्रेसवे एवं राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच) पर हुए। वहीं 1,06,682 यानी 23.1 प्रतिशत हादसे राज्य राजमार्गों जबकि 43.9 प्रतिशत हादसे अन्य सड़कों पर हुए। रिपोर्ट में कहा गया कि सालाना आधार पर सड़क हादसों की संख्या में 11.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई और उनसे होने वाली मृत्यु की दर 9.4 प्रतिशत बढ़ी। हादसों में घायल होने वाले लोगों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

 जैसा कि जानकार कहते हैं, सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या सुरक्षात्मक साधनों का इस्तेमाल न करने वालों की रही। सीट बेल्ट न पहनने की वजह से 16,715 लोगों की इन हादसों में मौत हो गई जिनमें से 8,384 लोग ड्राइवर थे जबकि बाकी 8,331 लोग वाहन में बैठे यात्री थे। इसके अलावा 50,029 दोपहिया सवार भी हेलमेट न पहनने की वजह से इन हादसों में अपनी जान गंवा बैठे।

यह सच है कि जहां हमारे यहां सड़कों का जाल विश्व स्तर का हो चुका है। इसका लगातार विस्तार और सुधार भी हो रहा है। पर सड़क हादसों की संख्या में कमी न आना उदास तो करता है। इस मसले का हल तो खोजना ही होगा। अब यह सुनकर भी दिल दहल जाता है कि साल 2022 में लगातार चौथे साल घातक सड़क दुर्घटना का सबसे अधिक नौजवान शिकार हुए। इस दौरान 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के 66.5 लोग हादसों का शिकार हुए। 

 अब बड़ा और जरूरी सवाल ये ही है कि कैसे थमे ये सड़क हादसे? कैसे सड़कों को खून से लथपथ होने से बचाया जा सकता है ? इस पर तो सरकार को त्वरित कारवाई करनी ही होगी I

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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