8 अप्रैल 1974 का दिन था जब जे पी ने छात्रों द्वारा शिक्षा सहित जनता के कई मुद्दों पर आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया था ,पूरे बिहार में छात्रों पर गोलियां चली थी। घोड़े दौराये गए थे। दमन का सिलसिला चल पड़ा था ऐसे में जे पी का नेतृत्व महत्वपूर्ण था। लोकनायक ने दमन के विरोध में पटना में एक मौन जुलूस का नेतृत्व आज के दिन किया था। यह मुँह में पट्टी बांधे हाथ पीछे किये पटना के सड़क हजारों लोग चल रहे थे। लोग चलते जा रहे आंदोलन में मौन और निःशब्द ,किन्तु पट्टी में लिखे शब्द गुंजराहे थे -छुब्ध ह्रदय है बंद जुबान। ,हमला चाहे जैसा होगा हाथ हमारा नहीं उठेगा। उस मौन जुलूस में स्व फणीश्वर बात रेणु ,सत्यनारायण एकनारायण दुसरे ,के साथ रचनाकार कवि रंगकर्मी पत्रकार वकील और बुद्धिजीवी भी थे। लोगों में अशंतोष को नयी दिशा मिली। जे पी धर्निर्पेक्छ स्वभाव सदासयता ,आज़ादी की लड़ाई में भूमिका ,संघर्ष एवं रचना का काम ,भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में विपक्छ की अहम् भूमिका जैसा इतिहास था जिसने देशवासिओं को प्रेरित किया नया सपना गढ़ने का। नया देश बनाने का। प्रसिद्द लेखक कवि सत्यनारायण कहते हैं कवि और कलाकार सभा कक्छों, चित्र दीर्घाओं और रंग भवनों से निकले सीधे नुक्क्ड़ों और चौराहों पर चले आये। रचना के सन्दर्भ में नई दृष्टि मिली।-पैनी साफ़ और सीधी। हाट बाजार में बोली जानेवाली सच्ची और ईमानदार भाषा ,जो दुमुंही नहीं होती ,रचनाकारों का संवाद बनी। वह 1974 का ही आंदोलन था जिसने लोगों को निर्भीक बनाया। लेखकों को शब्दों की ताकत का एहसास करया। ,कथ्य की अछूती भंगिमा दी ,सीधी सच्ची भाषा का नया संस्कार दिया। दमन ,दहशत आतंक ,अन्याय ओर अँधेरे के खिलाफ खड़े होने का आत्मविश्वास दिया है और आत्म निष्ठां दी है। यह हमारी निधि है ,हमारा सम्बल है ,हमारा पाथेय है। आज जब घटना चक्र फिर वहीँ पहुँच गया है ,हम हतप्रद या हताश नहीं हैं।इसीलिए कि हम खिले हैं ,उगे है और फूले हैं। हम धड़कती हुई जिंदगी हैं हम रियाया नहीं ,सल्तनत की ,आग सीने में है ,आदमी हैं। हम कल भी थे हम आज भी हैं, ,इलाके रूबरू फिर हमीसे हैं lछाया -8 अप्रैल 1974 के दो चित्र। पहले में प्रो रामवचन राय। परेश सिन्हा,फणीश्वर नाथ रेणु ,सूर्य नारायण चौधरी एवं अन्य। दूसरे में जे पी जीप में