बिहार के 5 मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र, जिन पर टिकी है सबकी निगाहें

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लोकसभा चुनाव के करीब आने के साथ सारे दलों में जातीय समीकरण को लेकर दांवपेंच जारी है। किस क्षेत्र में किसे सीट दी जाए कि जीत सुनिश्चित हो इसको लेकर भी लगातार मंथन जारी है। अगर हम बिहार की बात करें तो यहां पांच लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम और हिंदू में नेक टू नेक फाईट की संभावना रहती है। हलांकि यहां राजद और ओवैसी की पार्टी की आमने सामने टक्कर होती है बावजूद इसके लिए एनडीए भी कई जगह पहले से ही सीटिंग कैंडिडेट है। बिहार की आबादी लगभग इस समय 14 करोड़ है। मुस्लिम की जहां बहुलता है उन जिलों में कटिहार, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और दरभंगा शामिल है।
दरभंगा : इस जिलें में 2011 के सेंसस के मुताबिक मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 8.81 लाख थी जबकि हिंदू की जनसंख्या 30.42 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 10.88 लाख है वहीं हिंदुओ की अनुमानित जनसंख्या लगभग 37.55 लाख थी।
कटिहार : कटिहार बिहार का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला जिला है। 2011 के सेंसस के मुताबिक कटिहार जिले में 13.65 लाख मुस्लिम थे जबकि हिंदुओं की जनसंख्या 16.84 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 16.85 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 20.79 लाख है।
पूर्णिया : इस जिलें में 2011 के सेंसस के मुताबिक पूर्णिया जिले में 12.55 लाख मुस्लिम थे वहीं हिंदुओं की जनसंख्या 19.89 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 15.49 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की अनुमानित जनसंख्या लगभग 24.55 लाख है।
अररिया : इस जिलें में 2011 के सेंसस के मुताबिक अररिया जिले में 12.07 लाख मुस्लिम थे लेकिन हिंदुओं की जनसंख्या 15.93 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 14.90 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 19.67 लाख हो सकती है।
किशनगंज : इस जिलें में किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है जहां हिंदू से भी अधिक मुसलमानों की आबादी है। 2011 के सेंसस के मुताबिक इस जिले में 11.49 लाख मुस्लिम थे जबकि हिंदुओं की जनसंख्या 5.31 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 14.18 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 6 लाख 55 हजार होने का अनुमान है।
अब ऐसे में देखना दिलचस्प ये है कि आखिर इन मुस्लिम बहुत क्षेत्रों से एनडीए कैसे दो-दो हाथ करेगी। हलांकि भाजपा की रणनीति का एक अहम हिस्सा ओवैसी को माना जाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि ओवैसी भाजपा की बी टीम मानी जाती है। अगर ओवैसी के कैंडिडेट वोट काटेंगे तो एनडीए के लिए फायदेमंद साबित होगा। लेकिन दूसरे पहलू को देखें तो ओवैसी के चार विधायक पहले ही एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं जबकि एक विधायक अभी भी राजद के साथ है। वर्ष 2019 की बात करें तो 39 सीटों पर एनडीए का कब्जा रहा है, इसबार वो 40 सीटों पर दावा कर रहे हैं वहीं महागठबंधन भी अपनी पूरी ताकत झोकने से बाज नहीं आएगी।

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