भगवान चित्रगुप्त को गलियाने वाले को वोट, ना बाबा ना…कुम्हरार से Prof. K.C. Sinha को वोट देकर अपनी ताकत का एहसास कराएं

देश
  • भाजपा के वैश्य जाति के विधायक पवन जायसवाल ने अभी हाल ही एक इंटरव्यू में भगवान चित्रगुप्त को कमजोर देवता कह दिया। तो समझना होगा कि ये है भाजपा के विधायक की सोच और कायस्थों की सीटें छीनने वाले वैश्य जाति के भाजपाई विधायक की सोच।
  • कायस्थ किसी का गुलाम नहीं, अपने बूते सदियों से इबारत लिखते आये हैं, हमें किसी के सहारे की जरुरत नहीं, हम कलमजीवी खुद सक्षम हैं
  • कायस्थ जाति को राजनीतिक लाश बनने से बचाएं, प्रो. के.सी. सिन्हा को कुम्हरार से भारी मतों से विजयी बनाएं

भाजपा द्वारा किए गए हाल के फैसलों ने प्रतिनिधित्व का जो संतुलन बिगाड़ा है, वह न केवल न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भी एक चिंता का संकेत है। जिन सीटों पर लंबे समय से एक समुदाय का आवाज़ मिलता रहा, वहां उम्मीदवारों को किनारे कर देना केवल राजनीतिक चाल नहीं; यह उन मतदाताओं के विश्वास के साथ धोखा है जिनका प्रतिनिधित्व का अधिकार बना रहा।

पटना की कुम्हरार सीट की कहानी इसी विडम्बना का ज्वलंत उदाहरण है, जहां पारम्परिक तौर पर मिली पहचान और प्रतिनिधित्व को अनदेखा किया गया। एक ही शहर में बगल-बगल की सीटों पर समान जातीय समीकरणों को देखकर जो कटु सवाल उठते हैं, वे सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित नहीं: वे सामाजिक संवेदनशीलता और जनतंत्र के मर्म पर सवाल हैं।

और जब किसी जनप्रतिनिधि के बयान, जैसे भगवान चित्रगुप्त को लेकर दिए गए हल्के ढंग के शब्द, समाज के विश्वासों से खिलवाड़ करते दिखते हैं, तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि राजनीतिक नेतृत्व अपने आचरण और निर्णयों के लिए जवाबदेह ठहरे। नेतागण केवल वोटों के बंदोबस्त नहीं; वे उस विश्वास के संरक्षक भी हैं जो जनता ने उन पर सौंपा है। भाजपा के वैश्य जाति के विधायक पवन जायसवाल ने अभी हाल ही एक इंटरव्यू में भगवान चित्रगुप्त को कमजोर देवता कह दिया। तो समझना होगा कि ये है भाजपा के विधायक की सोच और कायस्थों की सीटें छीनने वाले वैश्य जाति के भाजपाई विधायक की सोच।

यह समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, बल्कि चेतना जगाने और सिद्धांतों की पुकार का है। जो लोग यह मानते हैं कि लोकतंत्र में हर समुदाय की आवाज़ का मोल है, उन्हें मिलकर यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि प्रतिनिधित्व सिर्फ़ हिसाब-किताब का मुद्दा नहीं बल्कि यह गरिमा, मान्यता और न्याय का सवाल है।

कथनी और करनी में संगति तभी आएगी जब राजनीतिक दल विकल्पों और टिकटों को पारदर्शिता, निष्पक्षता और क्षेत्रीय-लोगों की वास्तविक आकांक्षाओं के आधार पर निर्धारित करेंगे। अगर जनता अपने अधिकारों और मान्यताओं के लिए आवाज उठाएगी तो शांत, दृढ़ और सुसंगत तरीके से, तो राजनीतिक गणित भी बदलने पर मजबूर होगा।

हमारा मक़सद ज़्यादा नहीं: सही प्रतिनिधित्व, समान अवसर, और राजनीतिक नियत में इमानदारी। यही मांग लोकतंत्र को मजबूत करेगी। और यही असली शक्ति है जिसे किसी भी सत्ता या रणनीति से छीना नहीं जा सकता। वैसे भी कहा गया है कि बिना भय दिखाए प्रीत नहीं होती। तो इस बार कायस्थों को यह काम करना होगा। भाजपा को अपनी ताकत का अहसास कराना होगा। शुरुआत कुम्हरार से करते हैं और यहां से एक बार फिर कायस्थ उम्मीदवार को ही चुनते हैं। भाजपा को जाति-जाति खेलना है कायस्थ उम्मीदवारों के राजनीतिक महत्वकांक्षा की लाश पर तो हम अपना महल भाजपा उम्मीदवार की हार तय कर तैयार करेंगे।

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