पूर्व सांसद आनन्द मोहन की स्थायी रिहाई में हो रही देरी से समर्थकों की बेचैनी बढ़ी, देश भर के लाखों समर्थकों के चहेते नेता हैं आनन्द मोहन

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डॉ. सुरेन्द्र सागर
बिहार की राजनीति में अपनी धमक से सत्ता पक्ष और विपक्ष को झकझोर देने की ताकत रखने वाले पूर्व सांसद आनन्द मोहन की आजीवन कारावास की सजा समाप्त होने के बावजूद रिहाई को लेकर मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार सहित सभी दलों की तरफ से उठे आवाज के बावजूद आनन्द मोहन की अभी तक रिहाई नही होने से समर्थकों के बीच बेचैनी बढ़नी शुरू हो गई है।आनन्द मोहन के समर्थकों को लग रहा था कि बेटे चेतन आनन्द के इंगेजमेंट के पूर्व उनके नेता की सरकार द्वारा स्थायी रिहाई की घोषणा कर दी जाएगी लेकिन जैसे ही आनन्द मोहन के समर्थकों के बीच यह सूचना आई कि एक बार फिर तीसरी बार भी उनके नेता अपने पुत्र और राजद विधायक चेतन आनन्द के इंगेजमेंट और शादी को लेकर पैरोल पर ही जेल से बाहर आने वाले हैं तो उनमें निराशा छा गई है।आनन्द मोहन ने पुत्री सुरभि आनन्द की शादी के बाद समाप्त हुए पैरौल की अवधि के बाद पटना स्थित अपने आवास से सहरसा जेल जाते समय अपने समर्थकों को कहा था कि बहुत जल्द सब ठीक हो जाएगा।समर्थक मान कर चल रहे थे कि पुत्र चेतन आनन्द की शादी में आनन्द मोहन पूरी तरह स्थायी रिहाई के साथ जेल से बाहर आएंगे और समर्थकों के बीच होंगे।लेकिन अब समर्थक तीसरी बार उनके पैरौल पर जेल से बाहर आने की खबर सुनकर न सिर्फ निराशा में हैं बल्कि अपने नेता की रिहाई को लेकर चिंतित भी हो गए हैं।
पिछले दिनों जब आनन्द मोहन अपनी बिटिया की शादी में पैरौल पर बाहर आये थे तो देश भर के समर्थकों का विवाह स्थल पर सैलाब उमड़ पड़ा था।पूरी की पूरी बिहार सरकार और सरकार का कैबिनेट इस शादी में शामिल हुआ था।तब आनन्द मोहन की ताकत का जलवा पूरे देश ने देखा था।
आनन्द मोहन ही एक ऐसे नेता हैं जिनके समर्थकों की संख्या लाखों में है।बिहार तो बिहार पूरे देश मे आनन्द मोहन के मजबूत और ताकतवर समर्थक आनन्द मोहन के लिए ईंट से ईंट बजा देने की ताकत रखते हैं।
आनन्द मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी एक ऐसी पार्टी थी जिसका हर एक सदस्य नेता नही बल्कि आनन्द मोहन के परिवार के सदस्य की तरह था।कोई उन्हें नेताजी नही कहता था बल्कि भाई जी कहकर पुकारता था।उनकी पत्नी और पूर्व सांसद श्रीमती लवली आनन्द जी बिहार पीपुल्स पार्टी की प्रमुख नेत्री थी और बिहार पीपुल्स पार्टी से जुड़े लोग उन्हें भाई जी और भाभी जी से ही संबोधित करते थे।
यही कारण रहा कि आनन्द मोहन के समर्थकों का उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव रहा और यही जुड़ाव आनन्द मोहन की बड़ी पूंजी बन गई जिसे पंद्रह साल जेल में बिता देने के बाद भी कोई कमजोर नही कर पाया।
पंद्रह सालों के बाद भी जब आनन्द मोहन पुत्री सुरभि आनन्द के इंगेजमेंट के लिए पहली बार पैरौल पर सहरसा जेल से बाहर निकले तो समर्थकों का हुजूम और हजारों गाड़ियों का काफिला आनन्द मोहन की बिहार और देश की राजनीति में अपनी धमक और जलवे का अहसास करा दिया।
अब समर्थक अपने नेता आनन्द मोहन की जल्द से जल्द स्थायी रिहाई के लिए बेचैन हो उठे हैं और सरकार को अपने वादे पूरे करते हुए बिहार की जनता का भरोसा जीतने की दिशा में निर्णायक फैसले को अंजाम देना चाहिए।
आनन्द मोहन को उस गुनाह की सजा मिली है जो उन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किया ही नही है।आनन्द मोहन की सजा भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह है जिसे उन्होंने जनता की अदालत में उठाने की बात कही है।

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