आठवीं बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद महागठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार ने अपनी कैबिनेट का विस्तार कर लिया और अधिकांश मंत्रियों ने अपना कार्यभार भी संभाल लिया है। सरकार समन्वय के साथ चलने और अपना कार्यकाल पूरा करने का दावा कर रही है। जदयू और राजद एक ही समाजवादी विचारधारा की पार्टियां हैं। मगर तमाम दावों के बावजूद नीतीश कुमार के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनका उन्हें सामना करना आसान नहीं होगा। आपको बता दें कि बिहार डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों घिरे हैं और फिलहाल वह जमानत पर हैं। जबकि सुरेंद्र यादव, ललित यादव, रामानंद यादव जैसे कई बाहुबली विधायकों के नाम से लोग खौफ खाते रहे हैं, वे अब नीतीश कैबिनेट का हिस्सा हैं। माना जा रहा है कि यह एक संकेत है कि ऐसे बाहुबलियों का दबदबा बिहार की सरकार में रहने वाला है। इस पर सुशील मोदी ने भी सवाल उठाए हैं कि क्या जंगलराज की वापसी के संकेत हैं। जाहिर है नीतीश कुमार जिस तरह से सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं उनका न्याय के साथ विकास का नारा भी है; साथ ही करप्शन व कानून के उल्लंघन पर जिस तरह से जीरो टॉलरेंस की उनकी जो नीति है, उस पर सवाल उठता है।
नीतीश सरकार में जदयू, आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआईएमएल, सीपीईएम, सीपीआई और जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा समेत 7 पार्टियां शामिल हैं। जबकि एक निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह भी हैं। जाहिर है नीतीश को सहायक पार्टियों का समर्थन तो है मगर हिस्सेदारी का सवाल सभी पार्टियों के मन में है। जैसे वामदलों का सरकार से बाहर रहने के पीछे उचित भागीदारी नहीं मिलने की बात सामने आ रही है। कांग्रेस को महज दो मंत्री पद मिला तो पार्टी में कई सवाल उठ रहे हैं। मांझी की पार्टी को एक मंत्री पद की ओर चाहत थी। इसी प्रकार राजद में जातियों का कंबीनेशन का सवाल और नीतीश के अपने मंत्रियों की संख्या घट जाना भी एक बड़ी चुनौती है।
कहते हैं सिर मुंडाते ओले पड़े, ठीक वैसी ही स्थिति बिहार कैबिनेट विस्तार होते ही देखने को मिल रही है कि सीबीआई ने आईआरसीटीसी घोटाले में जांच तेज करने की अपील की है। इस मामले में सीबीआई ने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की है। इस घोटाले में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के अलावा 11 अन्य आरोपी हैं। सीबीआई की ओर से पिछले सप्ताह दाखिल अर्जी में याचिका पर जल्द सुनवाई करने और फैसला करने की मांग की गई है। जाहिर है कि नीतीश कुमार के सामने एक बड़ी चुनौती डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर आईआरसीटीसी घोटाले के साथ ही लालू परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की हो रही जांच भी है।
वर्ष 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हुए थे। राजद अध्यक्ष लालू यादव के परिवार पर भ्रष्टाचार के बहुत ही गंभीर आरोप लगाए गए हैं। चारा घोटाला, रेलवे होटल घोटाला, (आइआरसीटीसी स्कैम) मनी लॉन्ड्रिंग जैसे तमाम ऐसे मामले हैं जिसमें लालू परिवार फंसा हुआ है और इन पर कोर्ट में लगातार सुनवाई होती है।
नीतीश कैबिनेट विस्तार में जिस पर सबसे अधिक सवाल उठ रहे हैं उनमें राजद ओर से बाहुबली माने जाने वाले व कई आपराधिक मामलों में घिरे सुरेंद्र यादव, ललित यादव, रामानंद यादव और बाहुबली अनंत सिंह के करीबी कार्तिक सिंह का मंत्री बनाया जाना है। एनडीए से अलग होने के साथ ही नीतीश कुमार के सामने अब केंद्र सरकार से समन्वय बिठाए रखना बड़ा चैलेंज साबित होने वाला है। विकास की रफ्तार धीमी न पड़े इसके लिए केंद्र से निर्बाध फंडिंग जारी रखना एक बड़ी चुनौती है। बगैर केंद्र सरकार के सहयोग के बिहार का संपूर्ण विकास संभव भी नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। नीतीश छवि ईमानदार नेता के तौर पर है और एक बेहतरीन प्रशासक भी कहे जाते हैं। मगर, 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान और तेजस्वी यादव द्वारा उनकी इस छवि पर लगातार सवाल किए जाते रहे। इसका प्रभाव चुनाव नतीजों में भी दिखा और जो जदयू कभी बिहार की नंबर वन पार्टी रहती थी तीसरे नंबर पर पहुंच गई।