वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी में चल रहा ब्लैकमेलिंग का खेल, आपराधिक कृत्यों का खुलासा नही होने को ले वीसी और रजिस्ट्रार ने ब्लैकमेलर से किया समझौता

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शाहाबाद ब्यूरो
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के पूर्व कुलसचिव डॉ. धीरेन्द्र कुमार सिंह की व्याख्याता पद पर हुई  अवैध अनियमित नियुक्ति,प्रोन्नति,स्नातकोत्तर का अंक पत्र,पीएचडी डिग्री,निलंबन आदेश,महालेखाकार कार्यालय की आपत्तियों और वित्तीय अनियमितता की उच्चस्तरीय जांच कराकर विधि सम्मत कार्रवाई करने की मांग करने वाले तथाकथित बिहार प्रदेश तदर्थ व्याख्याता महासंघ के अध्यक्ष त्रिपुरारी शरण सिंह का मामला अब पूर्व कुलसचिव के साथ सेट हो गया है।मामले के सेट होते ही त्रिपुरारी शरण सिंह ने कुलसचिव के विरुद्ध लगाए गए गंभीर आरोपो को वापस ले लिया है। यूनिवर्सिटी गलियारे में चर्चा है कि मामले को सेट कराने में कुलपति की भूमिका भी अहम रही है।ब्लैकमेलिंग कर रहे ब्लैकमेलर के साथ सेटिंग गेटिंग कर कुलपति अपनी नियुक्ति तो पूर्व रजिस्ट्रार अपनी नौकरी बचाने में लग गए हैं।अब ब्लैकमेलर की गिरफ्त में आ चुके कुलपति और पूर्व रजिस्ट्रार ब्लैकमेलर के मन मुताबिक  असंवैधानिक नोटिफिकेशन जारी करने लगे हैं।
त्रिपुरारी शरण सिंह द्वारा राजभवन और सरकार के उच्च शिक्षा विभाग को आवेदन देकर पूर्व कुलसचिव पर कई ऐसे गंभीर आरोप लगाते हुए उच्च स्तरीय जांच कराकर विधि सम्मत कार्रवाई की मांग की गई थी।इस आवेदन पर जांच के पूर्व राजभवन और सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से आरोपों के समर्थन में शपथ पत्र देने  का निर्देश दिया गया था जिसके बाद त्रिपुरारी शरण सिंह ने राजभवन और उच्च शिक्षा विभाग को आरोपों की सत्यता के समर्थन में शपथ पत्र दिया था।
शपथ पत्र दाखिल करने के बाद वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलसचिव डॉ. धीरेन्द्र कुमार सिंह पर लगे गंभीर आरोपों की जांच के लिए कुलपति को निर्देश दिए गए और कुलपति द्वारा मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया।
जांच समिति बनने के बाद पूर्व कुलसचिव  के बीच हड़कम्प मच गया और मामले को मैनेज करने के प्रयास तेज कर दिए गए।
विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि त्रिपुरारी शरण सिंह ने मध्यस्थता कर रहे लोगों के बीच कुछ शर्तें रख दी और इस शर्त को पूरा करने के लिए उच्च स्तर पर यूनिवर्सिटी के कुलपति और प्रभारी कुलसचिव  को तैयार कराया गया।
त्रिपुरारी शरण सिंह ने पूर्व से यूनिवर्सिटी में दिए गए कई आवेदनों पर कार्रवाई करने की शर्त रखी थी।इन आवेदनों में उन्होंने स्थानीय शहर के तपेश्वर सिंह इंदु महिला महाविद्यालय में विधिवत रूप से गठित और कार्यरत शासी निकाय के सचिव डॉ. अजय कुमार सिंह को किनारे करते हुए राज्य सरकार के भेजे गए अनुदान की राशि को वितरित करने के लिए  कॉलेज की प्रभारी प्राचार्या और सरकारी प्रतिनिधि सदर एसडीओ को अधिकृत करने की शर्त रख दी थी।त्रिपुरारी शरण सिंह की पत्नी श्रीमती शोभा सिंह तपेश्वर सिंह इंदु महिला महाविद्यालय में मनोविज्ञान की व्याख्याता हैं और अपनी सेवाकाल के बीच मे वे बिना सूचना और बिना स्वीकृति के बिहार शिक्षा परियोजना में कार्य करने चली गई।बिहार शिक्षा परियोजना में कार्य करते हुए उन्होंने राज्य सरकार की राशि भी प्राप्त की थी।दुबारा जब वह कॉलेज में आई तो उनकी नए सिरे से नियुक्ति हुई और जिस पद पर उनकी नियुक्ति हुई वह स्वीकृत या अनुशंसित पद नही था।राज्य सरकार ने सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों के शक्षको को अनुदान राशि देने की जो नियमावली बनाई उसमें स्वीकृत और अनुशंसित पद पर नियुक्त और कार्यरत शिक्षको को ही अनुदान की राशि देने का प्रावधान किया।ऐसे में अनुदान की राशि से वंचित होने के भय से श्रीमती शोभा सिंह को पहली नियुक्ति से ही व्याख्याता मानने का उनके पति त्रिपुरारी शरण सिंह ने सचिव डॉ. अजय कुमार सिंह पर दबाव बनाना शुरू किया और इसके लिए शासी निकाय के सचिव पर लगातार कई वर्षों तक भ्रामक एवं गुमराह करने वाला आधारहीन आरोप लगाने का अभियान चलाया।
श्रीमती शोभा सिंह को गलत तरीके से पूर्व की नियुक्ति को मानने से इनकार कर देने के बाद उनके पति त्रिपुरारी शरण सिंह ने पूर्व में यूनिवर्सिटी प्रशासन को गुमराह कर कभी नियमानुकूल गठित कॉलेज शासी निकाय को भंग कराया तो कभी गलत तरीके से शासी निकाय के सचिव के वित्तीय अधिकारों पर रोक लगाने का आदेश निकलवा लिया।
बाद में जब यूनिवर्सिटी प्रशासन  को सच्चाई पता चला तो तत्कालीन कुलपति प्रो.देवी प्रसाद तिवारी ने सचिव डॉ. अजय कुमार सिंह को वित्तीय अधिकार प्रदान किया।
अब त्रिपुरारी शरण सिंह ने एक बार फिर नया दांव खेला है और पूर्व  कुलसचिव के विरुद्ध दिए गए आवेदन और उस आवेदन के आधार पर जांच समिति गठित कर शुरू की गई जांच को दबाने के लिए तपेश्वर सिंह इंदु महिला महाविद्यालय में कॉलेज शासी निकाय के सचिव के अधिकारों को गैर सांवैधानिक तरीके से रौंद देने की अपनी शर्त रखते हुए अपनी पत्नी को अवैध रूप से लाभान्वित कराकर राज्य सरकार के भेजे गए  विगत कई वर्षों के बकाए अनुदान की एकमुश्त बड़ी राशि हड़पने की साजिश रच डाली है।
पूर्व कुलसचिव डॉ. धीरेन्द्र कुमार सिंह पर लगाये गए गंभीर आरोपों की जांच नही हो इसके लिए त्रिपुरारी शरण सिंह को मैनेज करने में स्वयं कुलपति प्रो.शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी आगे आये हैं और उन्होंने त्रिपुरारी शरण सिंह की गैर कानूनी शर्त को मानते हुए  तपेश्वर सिंह इंदु महिला महाविद्यालय आरा में राज्य सरकार के भेजे गए अनुदान की राशि को वितरित करने के लिए शासी निकाय के सचिव डॉ. अजय कुमार सिंह को गैर सांवैधानिक तरीके से अलग करते हुए प्रभारी प्राचार्या और सरकारी प्रतिनिधि आरा सदर एसडीओ को अधिकृत करने का आदेश जारी कर दिया है।
कुलपति पूर्व के कुलसचिव डॉ. धीरेन्द्र कुमार सिंह को इसलिए बचाना चाहते हैं कि डॉ. धीरेन्द्र कुमार सिंह ने कुलसचिव रहते कुलपति का बिना एलपीसी जमा कराए वेतन निकासी की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
कुलपति के पद पर नियुक्त होकर आए प्रो.शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी पर आरोप है कि वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी से मान्यताप्राप्त देश किसी भी विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता तक नही है और अगर वे एलपीसी जमा करते तो उनके यूजीसी से मान्यताप्राप्त किसी भी विश्वविद्यालय में दस वर्षों के  प्रोफेसर पद पर शैक्षणिक कार्यानुभव की बात तो  बहुत दूर  एक व्याख्याता तक नही होने की पोल खुल जाती।
ऐसे में कुलपति को बिना एलपीसी जमा कराए वेतन देने की प्रक्रिया शुरू कराने वाले तत्कालीन कुलसचिव को बचाने के लिए त्रिपुरारी शरण सिंह की तपेश्वर सिंह इंदु महिला महाविद्यालय को बर्बाद करने एवं अपनी पत्नी श्रीमती शोभा सिंह को लाभान्वित करने और गैर कानूनी कार्यों को अंजाम दिलवाने के शर्तो को पूरा करते हुए अनुदान वितरण के लिए सचिव को दरकिनार करते हुए प्रभारी प्राचार्या और सरकारी प्रतिनिधि सदर एसडीओ को अधिकृत करने वाला आदेश कुलपति ने निकाल दिया है।
यह मामला अब पूरी तरह तूल पकड़ने लगा है और राजभवन से लेकर राज्य सरकार तक मामले को ले जाने के लिए कॉलेज शिक्षक एवं कर्मचारी संघ ने चेतावनी दे दी है।

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